हिंदी साहित्य के इतिहास की क्लास

ज़िंदगी हमारी सोच के परे चलती है, यह बात हम जितनी जल्दी समझ लेते हैं, उतना ही हमारे लिए अच्छा होता है। हर बार आपकी बनाई हुई योजना काम कर जाए ऐसा नहीं होता… कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।

मैं फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट क्लास नहीं ले पाई थी, क्योंकि उस समय मैं ऑफ़िस में थी और इस वजह से शुरुआत की एक-दो क्लास लेना मेरे लिए मुमकिन नहीं हुआ। मुझे बहुत बुरा लगता है कि जब मैं क्लास नहीं ले पाती। लेकिन सारी चीज़ें देखनी पड़ती हैं।

एक दिन शनिवार को ऑफ़िस का हाफ़ डे था तो मैं जल्दी-जल्दी ऑफ़िस से निकली। नोएडा के सेक्टर-16 मेट्रो स्टेशन से मैंने विश्वविद्यालय के लिए मेट्रो पकड़ी और किसी तरह से मैं विश्वविद्यालय पहुँच गई। हालाँकि मैं यह जानती थी कि मैं एक ही क्लास ले पाऊँगी, क्योंकि तीन बजे के लगभग मैं विश्वविद्यालय पहुँची थी और तब तक मेरी दो विषयों की क्लास हो चुकी थी और तीसरे विषय की शुरू होने वाली थी।

एनसीवेब की वेबसाइट पर एक नोटिस आया था जिसके द्वारा मुझे यह पता चला था कि कहाँ पर क्लास होंगी और कितने बजे किस विषय की क्लास होगी। मैं पहली बार क्लास लेने जा रही थी, इसलिए मुझे यह नहीं पता था कि जिस जगह पर क्लास होनी है, उस जगह पर कैसे जाया जाए, जिसकी वजह से मैं लेट भी हो रही थी; लेकिन मैं विद्यार्थियों से पूछते-पूछते अपनी क्लास तक पहुँच ही गई थी।

मुझे क्लास में देर से जाना बिल्कुल पसंद नहीं है। यह बहुत अजीब लगता है, क्योंकि प्रोफ़ेसर पढ़ा रहे होते हैं और एकदम से आप क्लास को बीच में डिस्टर्ब कर देते हैं तो पूरी क्लास की नज़रें आप पर टिक जाती हैं। यह मुझे एक बहुत परेशान करने वाला अनुभव लगता है। इसलिए इस तरह की नज़रों से मैं हमेशा बचने की कोशिश करती आई हूँ। आप पहली बार क्लास लेने जा रहे हो और लेट हो जाओ तो पहले तो आप ख़ुद को एडजस्ट करने की कोशिश करते हैं। इसके बाद आपका ध्यान इस तरफ़ जाता है कि प्रोफ़ेसर साहब क्या पढ़ा रहे है!

अच्छा मैं आपको बता देती हूँ कि अगर आप एम.ए. हिंदी में करते हैं तो आपको दो साल तक हिंदी साहित्य से जुड़े सभी विषयों पर पढ़ाया जाता है और सेमेस्टर में आपको चार से पाँच पेपर दिए जाते हैं जो कि आपको पढ़ने पड़ते हैं। इसलिए हमें भी पहले सेमेस्टर में पढ़ने के लिए पाँच पेपर दिए गए थे जो कि इस तरह से थे :

● हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल से रीतिकाल तक)

● आदिकालीन हिंदी काव्य

● भक्तिकालीन हिंदी काव्य

● हिंदी कथा-साहित्य

● भारतीय काव्यशास्त्र (जो कि मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था और न आज है।)

ख़ैर, पहली क्लास जिससे मैं गुज़री थी, वह ‘हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल से रीतिकाल तक)’ की थी। इस क्लास को एक महिला प्रोफ़ेसर ले रही थीं। पहली बात कि मुझसे पहले कुछ क्लासेस छूट गई थीं और दूसरी बात कि मैं क्लास में देर से पहुँची थी, इस वजह से मुझे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि क्लास में किस विषय पर बातचीत हो रही है। बहुत देर के बाद मुझे समझ आया कि मै’म सिलेबस के हिसाब से तो पढ़ा रही हैं, लेकिन टॉपिक कुछ आगे-पीछे करके पढ़ा रही हैं।

अच्छा जिन विद्यार्थियों ने बी.ए. हिंदी में किया था, उनको आसानी से क्लास में पढ़ाई जा रही चीज़ें समझ में आ रही थीं, शायद बस एक मैं ही थी जिसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। एकबारगी मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी ग़लत क्लास में तो नहीं बैठ गई।

किसी तरह क्लास ख़त्म हुई। इसके बाद मैं एक लड़की से मिली, जिसका नाम दुर्गेश्वरी है। दुर्गेश्वरी पहली ऐसी लड़की थी, जिससे मैंने क्लास में बातचीत करना शुरू किया था। दरअस्ल, क्लास का एक व्हाट्सएप ग्रुप बन रहा था, जिसमें वह सबके फ़ोन नंबर एड कर रही थी।

क्लास लेकर जब मैं बाहर निकली तो मेरी दुर्गेश्वरी से क्लास, टीचर और टाइमिंग को लेकर बातचीत होना शुरू हुई। मैं और दुर्गेश्वरी बस स्टैंड तक साथ गए और हमने बहुत से विषयों पर बात की। दुर्गेश्वरी से बातचीत का अनुभव बहुत अलग रहा है। दुर्गेश्वरी जैसी लड़कियाँ हमारे समाज में बहुत कम होती हैं… यह बात उससे बातचीत के बाद मुझे अच्छे से समझ आ गई थी।

दुर्गेश्वरी के साथ पहली मुलाक़ात को दोस्ती का नाम तो नहीं दे सकते, लेकिन हाँ वह पहली ऐसी लड़की थी—क्लास की—जिसका नंबर मेरे फ़ोन में था और जिससे मैं क्लास और पढ़ाई को लेकर बात करती थी।

दुर्गेश्वरी स्वभाव की बहुत अच्छी लड़की है… यह लोगों को उससे बात करने के बाद पता चलता है, लेकिन उससे पहले लोग उसकी तरफ़ उसके बालों को देखकर आकर्षित होते हैं; क्योंकि उसके बाल बहुत ख़ूबसूरत और लंबे हैं। शायद उसकी तरफ़ आकर्षित होने का पहला कारण यही है! बाक़ी दुर्गेश्वरी बहुत अच्छी कविताएँ भी लिखती है और बहुत ही सुंदर तरीक़े से कविता-पाठ भी करती है।

अगली क्लास रविवार की थी, इसलिए मैं सुबह ही क्लास लेने के लिए पहुँच गई थी। उस क्लास में मेरी कुछ और लोगों से मुलाक़ात हुई। मेरी कक्षा में बहुत से ऐसे विद्यार्थी हैं जो एक कॉलेज से पढ़कर आए हैं, इसलिए वे क्लास में पहले से ही दोस्त बने हुए थे।

मैं उस दिन उस क्लास में बहुत अकेला महसूस कर रही थी। मैं हमेशा से बहुत सारे दोस्तों के बीच में रही हूँ। मेरे हमेशा से बहुत सारे दोस्त रहे हैं, इसलिए मैंने कभी ऐसा अकेलापन उस दिन से पहले महसूस नहीं किया था। हाँ, ऐसा ज़रूरी नहीं है कि कहीं पर जाकर आपके एकदम से दोस्त बन जाएँ, लेकिन ऐसे कभी अकेले बिना किसी दोस्त के मैं क्लास में कभी बैठी नहीं, इसलिए मुझे बहुत अकेलापन महसूस हुआ।

ग्रेजुएशन में क्लास के पहले दिन ही जिस लड़की से मेरी बातचीत हुई थी, वह आज मेरी बेस्ट फ़्रेंड है और उसकी वजह से ही मेरा ग्रेजुएशन बहुत यादगार बना… इसलिए जब मैं एम.ए. की क्लास में थी तो मुझे मेरे दोस्त मीना, निशा और नूरीन की बहुत याद आई। हर सूरत इन तीनों ने मेरा ग्रेजुएशन के दौरान बहुत ध्यान रखा था।

जारी… 

~•~

पिछली किश्तें यहाँ पढ़ें : मैंने हिंदी को क्यों चुनाहिंदी में दाख़िला