विचारों में कितनी भी गिरावट हो, गद्य में तरावट होनी चाहिए

अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।

बीमार मन स्मृतियों से भरा होता है

गए दिन जैसे गुज़रे हैं उन्हें भयानक कहूँ या उस भयावहता का साक्षात्कार, जिसका एक अंश मुझ-से मुझ-तक होकर गुज़रा है। चोर घात लगाए बैठा था और हम शिकार होने को अभिशप्त थे। जैसे धीरे-धीरे हम उसकी ज़द में समा रहे थे, असंख्य डर हमारे सामने रील की तरह आते जा रहे थे। ज़िंदगी को जैसे किसी ने रिवाइंड बटन पर लगा दिया हो, एक-एक कर दृश्य या तो स्थिर हो रहे थे या पीछे की ओर बढ़ रहे थे।

एकतरफ़ा संवाद करती मृत्यु महामारी है

महामारी के दौरान दो सबसे दृश्य पक्ष—एक संवाहक या कैरियर (जैसे कोविड कैरियर) और दूसरी संवहन पुलिस (जैसे पुलिस) है। ये दोनों एक दूसरे की उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं। ये दूसरे से अपना निजी अस्तित्व सुनिश्चित करते हैं।

महामारी लोगों के दिलों में निशान ज़रूर छोड़ जाएगी

सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है।

निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है। वह कलाकार की अपनी बहुत निजी चीज़ है। जितनी ही अधिक वह उसकी अपनी निजी है, उतनी ही कालांतर में वह औरों की भी हो सकती है—अगर वह सच्ची है, कला-पक्ष और भाव-पक्ष दोनों ओर से। वह ‘अपने-आप’ प्रकाशित होगी। और कवि के लिए वह सदैव कहीं न कहीं प्रकाशित है—अगर वह सच्ची कला है, पुष्ट कला है।

मुझे निरर्थकता की तीखी गंध आ रही है

वह अपने झूठ को सच बनाती थी, इस तरह कि उसका सच जंगली हो जाता था। वह जंगल कि जिसमें पेड़ नहीं थे, सिर्फ़ पीड़ाएँ थीं… जिसमें अनर्गल बातों के जैसी उग आती थी—हल्की पीली घास। फिर मैं बैठकर क्लोरोफ़िल की अधिकता पर बातें करता था। वह कहती थी, ‘मै अनपढ़ हूँ, यक़ीन करो। सत्य और समय मेरे दुश्मन है, और इस पीड़ा का कोई इलाज नहीं। मैं कितनी ही बार सच बोलते हुए चोटिल हुई हूँ, यह एक लंबे समय तक होता रहा है।’’

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