रहिमन दाबे ना दबैं जानत सकल जहान
रहीम की कविता समय की कलादीर्घा में लगी हुई एक अद्भुत कला-प्रदर्शनी है। उनकी कविता में चार सौ साल पुराने भारतीय जीवन के क्लैसिक चित्र मिलते हैं। वे चित्र कलात्मक ढंग से जीवन की मर्मस्पर्शी सच्चाइयों का बयान करते हैं।
अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।
रहीम की कविता समय की कलादीर्घा में लगी हुई एक अद्भुत कला-प्रदर्शनी है। उनकी कविता में चार सौ साल पुराने भारतीय जीवन के क्लैसिक चित्र मिलते हैं। वे चित्र कलात्मक ढंग से जीवन की मर्मस्पर्शी सच्चाइयों का बयान करते हैं।
इस तरह की बातें मैंने कई लोगों से कई लोगों को पूछते-करते देखा है। यह एक रस्मी बात है। अगर साहित्य और लेखन के धंधे का आदमी मिलेगा तो इस तरह की बातें पूछ सकता है।
बहुत याद करने पर भी और बहुत मूड़ मारने पर भी पिछले दिनों ठीक-ठीक यह याद नहीं आया कि उस दिन हमारे घर में कौन-सा आयोजन था। हाँ, यह ख़ूब याद है कि उसी बरस किसी महीने दादी मरी थीं; पर यह याद नहीं आता कि वह दिन उनका दसवाँ था, तेरहवीं थी, होली थी या बरसी थी…पर उनकी मृत्यु से ही जुड़ा कोई आयोजन था घर में।
‘पहल’ नहीं रही। हिंदीसाहित्यसंसार में शोक की लहर है। मन मानने को राज़ी नहीं हो रहे हैं कि ‘पहल’ अब नहीं है, क्योंकि वह पहले भी एक बार अपनी राख से पुनर्जीवित हो चुकी है।
मेरे नाना लेखक बनना चाहते थे। वह दसवीं तक पढ़े और फिर बैलों की पूँछ उमेठने लगे। उन्होंने एक उपन्यास लिखा, जिसकी कहानी अब उन्हें भी याद नहीं। हमने मिलकर उसे खोजना चाहा, वह नहीं मिला। पता नहीं वह किसी संदूक़ का लोहा बन गया या गृहस्थी की नींव।
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