विचारों में कितनी भी गिरावट हो, गद्य में तरावट होनी चाहिए

अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।

प्यास के भीतर प्यास

विजयदेव नारायण साही के आलोचक-व्यक्तित्व की कहानी यहाँ नहीं, भदोही से सुनी जानी चाहिए। समाजवादी आंदोलन, क़ालीन मज़दूरों के संगठन, सोशलिस्ट पार्टी के सम्मेलनों और शिक्षण-शिविरों के ज़रिए सक्रिय राजनीतिक कर्म की प्रत्यक्षता ने उन्हें ऐसा आत्मविश्वास दिया कि वह आलोचना को राजनीति से स्वायत्त कर सके।

‘आलम किसू हकीम का बाँधा तिलिस्म है’

मैं इलाहाबाद, बनारस होते हुए दिल्ली पहुँचा; और मुझ तक पहुँचती रहीं कविताओं से भरी हुई हिंदी की छोटी-बड़ी अनगिनत पत्रिकाएँ। मैं हर जगह अपने वय के कवियों से जुड़ा रहा। बहुत से कवियों को उनकी पहली कविता से जानता हूँ। कई को उनके पहले सार्वजनिक पाठ से। कई कवियों की कविताओं के हर ड्राफ़्ट से वाक़िफ़ हूँ।

‘सारी मानवीयता दाँव पर लगी है’

योगेंद्र आहूजा से अविनाश मिश्र की बातचीत

साक्षात्कार या संवाद के शिल्प में नहीं इस साक्षात्कार या संवाद की शुरुआत आज से क़रीब चार वर्ष पूर्व हुई। मुलाक़ातों और सवालों के सिलसिले इसमें जुड़ते और नए होते चले गए। सवालों के जवाब देने और उन्हें माँजने के लिए यहाँ पर्याप्त वक़्त लिया गया। प्रत्येक जवाब पर एक रचना की तरह कार्य किया गया है। यह प्रयास और धैर्य अपनी ओर से आ रहे शब्दों के प्रति एक रचनाकार की ज़िम्मेदारी और नैतिकता को दर्शाता है।

मैंने हिंदी को क्यों चुना

मैं अब सबके साथ होते हुए भी अकेला महसूस करती थी। ऐसा नहीं है कि मेरे पास दोस्तों की कमी थी, लेकिन मैं उन सबके बीच में होते हुए भी उन लोगों को अपने दिल की बात नहीं बता पा रही थी।

जो हमें प्यारा लगता है

नवीन सागर (1948-2000) हिंदी के अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि-कथाकार हैं। यहाँ प्रस्तुत पत्र उन्होंने अपने पुत्र अनिरुद्ध सागर को 28 अक्टूबर 1996 को भोपाल से लिखा था। अनिरुद्ध उन दिनों (1995-96) दिल्ली में सेरेमिक कलाकार पांडू रंगैया दरोज़ के पास बतौर प्रशिक्षु काम कर रहे थे। अनिरुद्ध अभी दिल्ली में ही रहते हैं और सिरेमिक माध्यम में ही काम कर रहे हैं।

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