‘झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है’
गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण
अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।
शैलेश मटियानी (14 अक्टूबर 1931–24 अप्रैल 2001) हिंदी के अनूठे कथाकार हैं। उनका महत्त्व इसमें भी है कि वह सिर्फ़ कथा-कहानी-उपन्यास तक ही सीमित रहकर अपने लेखकीय कर्तव्यों की इति नहीं मानते रहे, बल्कि एक लेखक होने की ज़िम्मेदारियाँ समाज में क्या हैं, इसे भी समय-समय पर दर्ज करते रहे। उनका कथेतर गद्य इस प्रसंग में हिंदी का अप्रतिम कथेतर गद्य है। इस गद्य से ही 10 बातें यहाँ प्रस्तुत हैं :
”कोई यह नहीं कहे कि मैं गांधी का अनुयायी हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं अपना कितना अपूर्ण अनुयायी हूँ।”
विष्णु खरे (9 फ़रवरी 1940–19 सितंबर 2018) को याद करते हुए यह याद आता है कि वह समादृत और विवादास्पद एक साथ हैं। उनकी कविताएँ और उनके बयान हमारे पढ़ने और सुनने के अनुभव को बदलते रहे हैं।
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