विचारों में कितनी भी गिरावट हो, गद्य में तरावट होनी चाहिए

अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।

वह आवाज़ हर रात लौटती है

तवायफ़ मुश्तरीबाई के प्यार में पड़े असग़र हुसैन से उनके दो बेटियाँ हुई—अनवरी और अख़्तरी, जिन्हें प्यार से ज़ोहरा और बिब्बी कहकर बुलाया जाता। बेटियाँ होने के तुरंत बाद ही, असग़र हुसैन ने अपनी दूसरी बीवी, मुश्तरीबाई को छोड़ दिया। उस मुश्किल घड़ी में मुश्तरीबाई को अपनी दोनों बेटियों के साथ ख़ूब संघर्ष करना पड़ा। वे मासूम-जान, जब चार बरस की हुई तो कहीं से ज़हरीली मिठाई खा ली। उनकी तबीयत ख़राब होने लगी। दोनों को अस्पताल ले गए, जहाँ ज़ोहरा ने दम तोड़ दिया। लेकिन बिब्बी जैसे-तैसे बच गई।

हिंसा ही नहीं है हिंदी

कौन नहीं जानता कि समय के विभिन्न चरणों और दौरों में एक ही भाषा अत्यंत प्रगतिशील और धुर प्रतिगामी विचारों की संवाहिका हो सकती है। ऐसा भी होता है कि एक साथ कितनी ही भाव-धाराएँ एक भाषा में सचल और सक्रिय रहती हैं। इसमे कोई दो मत नहीं कि इस समय हिंदी को घृणा-भाषा के तौर पर प्रभूत तरीक़े से इस्तेमाल किया जा रहा है। वह बाँटने का उपकरण बन गई है। उसे अनाधुनिकता के वितरण और विस्तार के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। उसे ज्ञान विरुद्ध अंधता का एजेंट बना दिया गया है। लेकिन क्या इस आधार पर उसकी यह ब्रांडिंग ठीक होगी कि हिंदी मूलतः घृणा के प्रत्ययन और क्रियात्मकता की भाषा है।

शहर, अतीत और अंत के लिए

अतीत जो आपके कई सारे अंत से मिलकर बना है, यह आपको इंसान होने का एहसास दिलाता रहता है… आपको भावुक करके, क्रोधित करके, आप छटपटा सकते हैं; क्योंकि आपके हाथ में कुछ नहीं है—सिवाय याद करने के—इसलिए याद करते रहिए—अपने बचपन का अंत, स्कूल के दिनों का अंत, हर उस रिश्ते का अंत जिसमें आप प्रेम महसूस करते थे। अंत से जुड़े रहिए, इंसान बने रहिए।

‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’

तुम कविता की दुनिया में एक चमकता सितारा हो, जिसे एक युवा दूर पृथ्वी से हमेशा निहारता रहता है। उसकी इच्छा है कि उसके घर की दीवारें तुम्हारी तस्वीरों से भरी हों। भविष्य की उसकी यात्राओं में चिली का पराल शहर शामिल है, जहाँ तुम जन्मे। वह सैंटियागो की गलियों में इसलिए घूमना चाहता है, क्योंकि उसका महबूब कवि अपने अंतिम दिनों में यहाँ भटका था। वह उन दीवारों को कान लगाकर सुनना चाहता है, जहाँ तुमने अपनी प्रेमिका माटिल्डा का नाम पुकारा होगा।

गद्य की स्वरलिपि का संधान

हिंदी के काव्य-पाठ को लेकर आम राय शायद यह है कि वह काफ़ी लद्धड़ होता है जो वह है; वह निष्प्रभ होता है, जो वह है, और वह किसी काव्य-परंपरा की आख़िरी साँस गोया दम-ए-रुख़सत की निरुपायता होता है। आख़िरी बात में थोड़ा संदेह हो भी तो यह मानने में क्यों कोई मुश्किल हो कि मनहूसियत उसमें निबद्ध होती है। वह डार्क और स्याह होता है। इसकी वजह क्या यह है कि हिंदी में कविताएँ ही अक्सर डार्क होती हैं।

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