मूर्खता सरलता का सत्यरूप है

सुख तो धर्माचरण से मिलता है, अन्यथा संसार तो दुःखमय है ही! संसार के कर्मों को धार्मिकता के साथ करने में सुख की ही संभावना है।

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ऐश्वर्य का मदिरा-विलास किसे स्थिर रहने देता है!

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निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।

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संसार भी बड़ा प्रपंचमय यंत्र है। वह अपनी मनोहरता पर आप ही मुग्ध रहता है।

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प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है। प्रेम का मुख्य अर्थ है—‘आत्मत्याग’।

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संयम का वज्र-गंभीर नाद प्रकृति से नहीं सुनते हो? शारीरिक क्रम तो गौण है, मुख्य संयम तो मानसिक है।

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परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शांति मरण है।

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अंधकार का आलोक से, असत् का सत् से, जड़ का चेतन से और बाह्य जगत का अंतर्जगत से संबंध कौन कराती है? कविता ही न!

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ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात-दिन लड़ना पड़े!

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जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।

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सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।

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मनुष्य को जान-बूझकर उपद्रव मोल न लेना चाहिए। विनय और कष्ट सहन करने का अभ्यास रखते हुए भी अपने को किसी से छोटा न समझना चाहिए, और बड़ा बनने का घमंड भी अच्छा नहीं होता।

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स्त्रियों को उनकी आर्थिक पराधीनता के कारण जब हम स्नेह करने के लिए बाध्य करते हैं, तब उनके मन में विद्रोह की सृष्टि भी स्वाभाविक है! आज प्रत्येक कुटुंब उनके इस स्नेह और विद्रोह के द्वंद्व से जर्जर है।

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जीवन लालसाओं से बना हुआ सुंदर चित्र है। उसका रंग छीनकर उसे रेखा-चित्र बना देने से मुझे संतोष नहीं होगा।

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जीवन का सत्य है—प्रसन्नता।

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जीवन विश्व की संपत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से, या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना ठीक तो नहीं।

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मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।

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मनुष्य दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बंद कर देता है।

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कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं है।

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प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते।

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व्यक्ति का मान नष्ट होने पर फिर नहीं मिलता।

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राजा अपने राज्य की रक्षा करने में असमर्थ है, तब भी उस राज्य की रक्षा होनी ही चाहिए।

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जीवन विश्व की संपत्ति है।

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सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने हृदय में डुबा नहीं सकता।

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जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।

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वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छल-छद्म की धूल उड़ती है।

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प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।

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सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं।

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मूर्खता सरलता का सत्यरूप है। मुझे वह अरुचिकर नहीं। मैं उस निर्मल-हृदय की देख-रेख कर सकूँ, तो यह मेरे मनोरंजन का ही विषय होगा।

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पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है।

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इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।

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दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।

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संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत ही नरक है।

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अत्याचार के श्मशान में ही मंगल का, शिव का, सत्य-सुंदर संगीत का शुभारंभ होता है।

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कविता करना अत्यंत पुण्य का फल है।

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संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है।

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संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?

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क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।

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जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।

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जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।

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समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती हैं।

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आत्म-सम्मान के लिए मर मिटना ही दिव्य-जीवन है।

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असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

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अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।

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पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।

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मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है।

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हृदय का सम्मिलन ही तो ब्याह है।

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पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।

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स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।

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सेवा सबसे कठिन व्रत है।

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मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के ज़रिए शुद्ध हो सकता है।

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प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता।

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अधिक हर्ष और उन्नति के बाद ही अधिक दुःख और पतन की बारी आती है।

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निष्फल क्रोध का परिणाम होता है, रो देना।

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मानव मनोवृत्तियाँ प्रायः अपने लिए एक केंद्र बना लिया करती हैं, जिसके चारों ओर वह आशा और उत्साह से नाचती हैं।

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केवल महत्ता का प्रदर्शन, मन पर अनुचित प्रभाव का बोझ है।

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जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।

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मेरे पास पाणिनि में सिर खपाने का समय नहीं है। भाषा ठीक करने से पहले, मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ।

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स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।

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हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

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सत्य इतना विराट है कि हम क्षुद्र जीव व्यवहारिक रूप से उसे संपूर्ण ग्रहण करने में प्रायः असमर्थ प्रमाणित होते हैं।

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पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान।

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नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।

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संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है, उतनी कटार नहीं।

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दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।

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जयशंकर प्रसाद के यहाँ प्रस्तुत उद्धरण ‘जयशंकर प्रसाद ग्रंथावली’ (डायमंड पॉकेट बुक्स, संस्करण : 2004) से चुने गए हैं।