अथ ‘स्ट्रेचर’ कथा
यह सच है कि मानवीय संबंधों की दुनिया इतनी विस्तृत है कि उस महासमुद्र में जब भी कोई ग़ोता लगाएगा उसे हर बार कुछ नया प्राप्त होने की संभावना क़ायम रहती है। बावजूद इसके एक लेखक के लिए इन्हें विश्लेषित या व्यक्त करते वक़्त यह इतना सरल नहीं हो पाता। इसका एक कारण तो इस तेज़ और सिमटी दुनिया की बोर करने वाली उभरती बाह्य एकरूपता भी है। अंदर चाहे जितने भी अपभ्रंश हों, आवरण सबके एक समान ही होते या होने का प्रयास करते दिखते हैं। इस आवरण को बेधकर उलझी हुई तह को खंगालना इतना भी सहज नहीं, इसलिए इन दिनों लव स्टोरी के नाम पर लिखी जाने वाली कहानी मुझे ज्यादा प्रभावित नहीं करती। मैं अपनी कहानियों से भी इसीलिए संतुष्ट नहीं होता। लेकिन नई पीढ़ी के रचनाकार अविनाश की ‘बिंज’ पर प्रकाशित उपन्यासिका ‘स्ट्रेचर’ पढ़ते वक़्त मैं लेखक की सूक्ष्म दृष्टि और कथा कहने की अनूठी कला से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
इस कहानी की विशेषता कथानक से ज़्यादा लेखक की वह दृष्टि है जो मानवीय संबंधों की उन परतों को बड़ी सहजता से सामने रख देता है जिसे समझने के लिए हम सदैव उद्वेलित रहते हैं। और यह बात सिर्फ़ स्त्री-पुरुष के प्रेम-संबंध पर ही लागू नहीं है। मुख्य पात्र के अपने पिता और माँ के साथ के संबंधों को भी लेखक ने जो भाषा प्रदान की है, वह प्रभावित करती है। कहानी के पहले पन्ने से ही आप इसके पात्रों के साथ चलने लगते हैं। और यह अंत तक कायम रहता है। आप सिर्फ़ कहानी का हिस्सा बनते प्रतीत नहीं होते बल्कि उस पूरे वातावरण, समय का हिस्सा हो जाते हैं जिसे लेखक ने बड़े ही प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।
पूरी कहानी में किसी पात्र का नाम स्पष्ट नहीं है, लेकिन आपको इसकी कमी नहीं खलेगी, क्योंकि इसके पात्र स्वयं ही एक विशेषण की तरह आपके सामने होते हैं। मुख्य पात्र के अंतर्मन और जद्दोजहद को परखते पन्ने हमें संवेदनाओं की उन यात्राओं पर ले जाते हैं जहाँ हम वास्तविक ज़िंदगी में जाने से हिचक जाते हैं, सच डराता भी तो है।
इस कहानी की एक विशेषता यह भी है कि इसके आरंभ और इसके अंत को कभी भी अंतिम नहीं कहा जा सकता।
संभावनाओं के मध्य शुरू हुई यह कहानी संभावनाओं के मध्य ही समाप्त हो जाती है, लेकिन इस बीच वह उन रेशों को खोलने में, सुलझाने में सफल रहती है जिसके बीच इस कहानी का मुख्य पात्र जो कि हममें में से ही कोई एक प्रतीत होता है अपने संघर्ष, जीत और हार को जी रहा होता है। न तो यह संघर्ष, न यह जीत और न ही यह हार ही उस पात्र भर का है और न ही सुलझे रेशे ही सिर्फ़ उसके रह जाते हैं बल्कि यह सबका, साझा प्रतीत होता है। यह मनुष्यता, उसके उत्थान और पतन की दिन-ब-दिन उलझती जा रही कृत्रिम और प्राकृतिक विन्यास की संपूर्ण गाथा का एक टुकड़ा भी है।
एक छोटी सी प्रेम कहानी जो मनुष्य जाति की अनंत यात्राओं के इस प्राप्त को सटीक तरीक़े से व्यक्त करने में काफ़ी हद तक सफल हुई है। लेखक के ही शब्दों में कहें तो—‘‘ये एक लव स्टोरी नहीं है, यह दुखों में भीगी हुई दो क्वांटम डस्ट के आकर्षण के मध्य का साहित्य है।’’ और शायद इससे ज्यादा भी कुछ…
तेरह एपीसोड में कही गई यह कहानी संवेदनाओं की तमाम पगडंडियों के बीच चलकर उस अंतहीन यात्रा को शब्द प्रदान करने की कोशिश है जिसके मूल में मानवीय चेतना, अपेक्षा, उत्कर्ष, निराशा, पतन के मध्य उलझी एक मनोदशा है। प्रयत्न इससे जुड़े गूढ़ प्रश्नों के बीच चलने का है। और स्वाभाविक तौर पर ये पगडंडी समतल नहीं है, इनके अपने क्षय व आलंबन हैं जो कभी भी कृत्रिम नहीं दिखते। मुख्य पात्र को जिस तरह से गढ़ा गया है और उसकी जद्दोजहद को जिस तरह उकेरा गया है, वह प्रभावित करता है। प्रेम-संबंध में स्त्री और पुरूष द्वारा अपनी-अपनी दुनिया को पृथक बचाते हुए साथ चलने की कोशिश में उत्पन्न उलझन को समझना और उसे सटीक शब्दों में व्यक्त करना बहुत कठिन है। बाहर से यह जितना भी सरल दिखता हो, स्वाभाविक दिखता हो इसका विन्यास उतना ही क्लिष्ट होता है। लेखक यह काम बख़ूबी करते हैं। चाहे मुख्य पात्र के ये शब्द हों, ‘‘उसका मेरे से कुछ नहीं माँगना, मुझे अंदर तक कचोटता था। मैं ऐसे बेबुनियाद ज़ख़्म अपने खोखले शब्दों, विचारों और अर्थों से लेपता था…’’ या उसकी प्रेमिका का यह कथन, ‘‘हमारा शरीर ही सत्य है, वर्तमान ही साहित्य है और हम दोनों उपन्यास…’’ इसकी पुष्टि करते हैं।
इस कहानी में मुख्य पात्र की प्रेमिका का विवरण संक्षिप्त है, लेकिन जिस तरह से उसे लेखक ने व्यक्त किया है, वह उसे प्रभावी बनाता है। सीमित शब्दों के बावजूद उसकी पूरी छवि और उसका अंतः पाठक तक स्पष्ट तौर पर पहुँच जाता है। स्त्री-मन की दुविधा, संघर्ष और सीमा को कम शब्दों में भी पूरा उभार प्राप्त हुआ है।
हिंदी साहित्य के इस वर्तमान दौर में प्रचलित, स्थापित फ़ॉर्म से इतर जाने की कोशिश काफ़ी कम लेखक करते हैं, या यह उनके लिए सहज नहीं होता। लेकिन लेखक ने इस कहानी में यह साहस दिखाया है। नई पीढ़ी के एक लेखक को ऐसा करते देखना सुखद है। हिंदी साहित्य को इस तरह के अनेकानेक प्रयासों की आवश्यकता है जो इसे एक नया आयाम दे सके। इस लिहाज़ से भी ‘स्ट्रेचर’ और लेखक उल्लेखनीय प्रतीत होते हैं।