‘अपने मन का राज्य स्वराज है’
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी किताब ‘हिंद स्वराज’ में स्वराज के लिए सच्ची विकलता रखने वाले और उसके लिए संघर्ष करने वाले हिंदुस्तानी के कुछ लक्षण बताए थे/हैं। आज स्वतंत्रता दिवस की 74वीं वर्षगाँठ पर ‘हिन्दवी’ ब्लॉग की शुरुआत करते हुए हम इन्हें ‘स्वराज का सार’ के रूप में याद कर रहे हैं :
वह जो अँग्रेज़ी भाषा का उपयोग लाचारी से ही करेगा।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि यह समय पश्चाताप और शोक का है।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि कहने से करने का असर अद्भुत होता है। हम निडर होकर जो मन में है वही कहेंगे और इस तरह कहने का जो नतीजा आए उसे सहेंगे, तभी हम अपने कहने का असर दूसरों पर डाल सकेंगे।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि हम दुःख सहन करके ही बंधन यानी ग़ुलामी से छूट सकेंगे।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि अँग्रेज़ों की सभ्यता को बढ़ावा देकर हमने जो पाप किया है, उसे धो डालने के लिए अगर हमें मरने तक भी अंडमान में रहना पड़े, तो वह कुछ ज़्यादा नहीं होगा।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि कोई भी राष्ट्र दुःख सहन किए बिना ऊपर नहीं चढ़ा है। लड़ाई के मैदान में दुःख ही कसौटी होता है, न कि दूसरे को मारना। सत्याग्रह के बारे में भी ऐसा ही है।
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वह जो हर दूसरे हिंदुस्तानी की तरह यह समझेगा कि यह कहना कुछ न करने के लिए एक बहाना भर है कि ‘जब सब लोग करेंगे तब हम भी करेंगे’। हमें ठीक लगता है इसलिए हम करें, जब दूसरों को ठीक लगेगा तब वे करेंगे—यही करने का सच्चा रास्ता है।
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अपने मन का राज्य स्वराज है।
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स्वराज की कुंजी सत्याग्रह, आत्म-बल या करुणा-बल है।
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मैंने जो कुछ कहा है वह अँग्रेज़ों के लिए द्वेष होने के कारण नहीं, बल्कि उनकी सभ्यता के लिए द्वेष होने के कारण कहा है।
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मुझे लगता है कि हमने स्वराज का नाम तो लिया, पर उसका स्वरूप हम नहीं समझे हैं। मैंने उसे जैसा समझा यहाँ बताने की कोशिश की है।
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मेरा मन गवाही देता है कि ऐसा स्वराज पाने के लिए मेरा शरीर समर्पित है।