‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’

सविता सिंह के इस संग्रह की कविताओं में करुण भाव के साथ-साथ हम जीवन के प्रति एक निसंग भाव भी महसूस करते चलते हैं। ऐसी मनःस्थिति अक्सर जीवन के प्रति एक गहरे लगाव के बाद किसी गहरे आघात से पैदा होती है। लेकिन इस निसंगता का अर्थ अवसाद एवं कर्तव्य विमुखता नहीं है। यह ज़िंदगी के संघर्षों से पलायन नहीं है।

उम्मीद अब भी बाक़ी है

रवि भाई एक बार बातों-बातों में बतलाए कि भाई, आजकल के युवा कवि अपनी कविता की कमज़ोरियों पर बातें ही नहीं करना चाहते। यदि बातें करो तो आप उनके शत्रु बन जाओ। मुझे पता था कि रवि भाई कविता के कला-पक्ष की तुलना में जन-पक्ष की तरफ ज़्यादा ध्यान देते थे। वह कहते थे कि कविता को आम जन की भाषा के नज़दीक आना चाहिए। कविता के सुपाच्य होने की वे लगातार वकालत करते रहते थे। कविता आसानी से संप्रेषित हो जाए। इसके लिए नए पाठकों का निर्माण और युवा कवियों को प्रोत्साहन देने के लिए ही ‘कवि संगम’ की परिकल्पना उन्होंने की। पहली बार देश भर से चालीस कवियों को उन्होंने निमंत्रित किया। तीस कवियों की उपस्थिति रही।

नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती

किसी भी समय की कविता हो, उस कविता में आने वाले परिवर्तन या उस नई कविता का चेहरा केवल उस समय आई नई पीढ़ी के कवि ही नहीं बनाते हैं। उससे पहले के जो कवि हैं, जो लिख रहे होते हैं, वह भी कहीं न कहीं उसको बनाते हैं। यह नहीं है कि जो सत्तर के दशक से या उससे भी पहले से जो रचनाकार लिखते हुए आ रहे थे, उनका इस नई सदी की कविता का चेहरा-मोहरा बनाने में कोई योगदान नहीं है।

इक्कीसवीं सदी की स्त्री-कविता : 2

वह दौर जब स्त्री-कवियों के नाम शुरू होते ही समाप्त हो जाते थे, अब विचार का अकादमिक विषय हो चुका है। अब हमारा सामना हिंदी कविता की एक बिल्कुल नई सृष्टि से है, जहाँ एक नई स्त्री है—अपनी बहुसंख्य अभिव्यक्तियों के साथ।

इस वर्ष के इक्कीस कवि

वर्ष 2021 में हमने ‘हिन्दवी’ पर ‘इसक’ के अंतर्गत ऐसे 21 कवियों की कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिन्होंने गए इक्कीस वर्षों में हिंदी कविता संसार में अपनी अस्मिता और उपस्थिति को पाया और पुख़्ता किया। इसक—यानी ‘इक्कीसवीं सदी की कविता’ का संक्षिप्त रूप—की परिकल्पना को प्रकट और स्पष्ट करते हुए गत वर्ष हमने कहा था कि इसक हमारी मुख्य योजनाओं में सम्मिलित है और यह हमारा वार्षिक आयोजन होने जा रहा है। इस प्रसंग में ही अब प्रस्तुत है—’इसक-2022′

उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है

कविताएँ इधर लगभग नहीं ही लिखीं। अनुभूति-क्षणों के आकलन और अभिव्यक्ति की प्रक्रिया शायद कुछ और राहों की ओर मुड़ पड़ी हो, शायद अधिक व्यापक और प्रभविष्णु धरातलों को खोज रही हो। खोज की सफलता या सार्थकता का आश्वासन अभी से कैसे—और क्यों—दिया जाए?

प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र

तकनीक और सुविधाओं के इस भँवरजाल में जीते हुए हमने अपना समयबोध और रचनाबोध दोनों ही गँवा दिया है, ऐसा जान पड़ता है। सूचनाएँ हम तक इतनी तीव्र गति से पहुँचती हैं कि हम अभी पुरानी सूचना को पचा ही पाएँ, तब तक एक नई सूचना हमारे सामने होती है। घटनाएँ, दुर्घटनाएँ तक टिकती नहीं; जैसे सब कुछ किसी तीव्र गति के प्रवाह में हो और इसकी गति को नियंत्रित ही न किया जा सके?

कविता सीढ़ियों नहीं, छलाँगों की राह है

कविता अगर यह व्रत ले ले कि वह केवल शुद्ध होकर जिएगी, तो उस व्रत का प्रभाव कविता के अर्थ पर भी पड़ेगा, कवि की सामाजिक स्थिति पर भी पड़ेगा, साहित्य के प्रयोजन पर भी पड़ेगा।

दिल्ली एक हृदयविदारक नगर है

असद ज़ैदी की कविताओं के बनने की प्रक्रिया एकतरफ़ा नहीं है। आप उसे जितनी बार पढ़ेंगे, वह आपके अंदर फिर से बनेगी और अपनी ही सामग्री में से हर बार कुछ नई चीज़ों की आपको याद दिलाएगी कि आप उन्हें अपने यहाँ खोजें—और वे आपके यहाँ पहले से मौजूद या तुरंत तैयार मिलेंगी।

‘मैं अपने एकांत का रैडिकल इस्तेमाल करना चाहता हूँ’

अगर आप मुझसे पूछें तो मैं कहूँगा कि मेरा कथा-मन है। मुझे कहानियाँ सुनना, देखना और काफ़ी हद तक पढ़ना भी अच्छा लगता है। कविताएँ लिखने के बावजूद मेरी कहानी कहने की महत्वाकांक्षा नहीं, आकांक्षा कभी कम नहीं हुई। इसीलिए न केवल मैंने कहानियाँ लिखीं, बल्कि अब मैं कथात्मक फ़िल्में भी बनाना चाहता हूँ।

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