दिन के सारे काम रात में गठरी की तरह दिखते हैं

चीज़ें रहस्यमय हो जाएँ तो पूजनीय होने में उन्हें वक़्त नहीं लगता। पूरा शहर एक अबूझ दृश्यजाल में बदल रहा था—रहस्यमय दृश्यजाल जो रिल्के की कविताओं में और थॉमस मान के उपन्यास में मिलता है।

सूक्ष्मता से देखना और पहचानना

साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए। वह अपने परिवेश से हार्दिक प्रेम रखे, क्योंकि इसी के द्वारा वह अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ खाद प्राप्त करता है।

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे समंदर का भार कछुओं ने अपनी पीठ पर उठा रखा हो और मछली के रोने से एक नदी फूट पड़ेगी—सागर में।

हिंदी साहित्य के इतिहास की क्लास

ज़िंदगी हमारी सोच के परे चलती है, यह बात हम जितनी जल्दी समझ लेते हैं, उतना ही हमारे लिए अच्छा होता है। हर बार आपकी बनाई हुई योजना काम कर जाए ऐसा नहीं होता… कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।

‘भाषा से प्रेम अब कम हुआ है’

इस संसार में—साहित्य और कलाओं के संसार में—एक बहुत सक्रिय और संपन्न आयु जी चुके अशोक वाजपेयी के साक्षात्कारों की हिंदी में कोई कमी नहीं है। वे पुस्तकों के रूप में, संकलनों और पत्रिकाओं में हद से ज़्यादा फैले हुए हैं। बावजूद इसके उनसे बात करने की आकांक्षाएँ बराबर बनी हुई हैं—तमाम असहमतियों के रहते। इस प्रकार के व्यक्तित्व हिंदी के सांस्कृतिक इलाक़े में पहले भी कम ही थे, अब भी कम ही हैं और लगातार कम होते जा रहे हैं।

‘यह दिमाग़ों के कूड़ाघर में तब्दील किए जाने का समय है’

हमें यह उदास स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम अँधेरे में लालटेनें हैं। हमसे रास्ते रोशन नहीं होते किसी और के, हम अपनी विपथगामिता पर चौकसी करते चौकीदार भर हैं।

‘हिंदी के लेखक अलग-अलग क्षेत्रों के ड्रॉपआउट्स हैं’

उदय प्रकाश से संवाद एक मुश्किल काम है। उनकी शख़्सियत में ‘अनिश्चितता’ का अंडरटोन है। वह खुलते हैं तो बहुत सहज दिखते हैं, मगर कभी-कभी एक कठिन चुप्पी उन पर हावी हो जाती है।

‘मसिजीवी होना तो भूखे मरना है’

हम उनके घर पर पहुँचे। वह अपने कमरे में सो रहे थे। मैंने उनके अध्ययन-कक्ष में देखा—कोने में एक झोला टँगा है। टेबल पर ओम थानवी की अज्ञेय पर केंद्रित किताब रखी है। हाथ से लिखे कुछ पन्ने पड़े हैं।

‘क़र्ज़ किस-किस नज़र के हम पर हैं’

सुधांशु फ़िरदौस (जन्म : 1985) का वास्ता इस सदी में सामने आई हिंदी कविता की नई पीढ़ी से है। गत वर्ष उनकी कविताओं की पहली किताब ‘अधूरे स्वाँगों के दरमियान’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक पर एक आलेख ‘हिन्दवी ब्लॉग’ पर प्रकाशित हो चुका है। इसके साथ ही सुधांशु फ़िरदौस इसक-2021 के कवि भी हैं।

इक्कीस के इक्कीस कवि

हिन्दवी ने इसक को अपनी मुख्य योजना में सम्मिलित किया है। यह हमारा वार्षिक आयोजन होने जा रहा है। इसकी शुरुआत इसक-2021 से हो रही है।

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