आया कहाँ से ये लफ़्ज…

यह एक बहुत बड़ा भ्रम है कि हिंदी संस्कृत से निकली और उर्दू का जन्म फ़ारसी भाषा से हुआ। सच तो यह है कि ये दोनों ही ज़बानें बोलचाल की मक़ामी ज़ुबान से निकलीं और विकसित होती चली गईं। हिंदी वहाँ से शुरू हुई जहाँ से संस्कृत ख़त्म होती है।

हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?

‘हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?’ यह प्रश्न कोई भी कर सकता है, बशर्ते वह हिंदी भाषा और उसके साहित्य में दिलचस्पी रखता हो; लेकिन प्राय: यह प्रश्न किशोरों और नवयुवकों की तरफ़ से ही आता है। यहाँ इस प्रश्न का उत्तर कुछ क़दर देने की कोशिश की गई है कि जब भी कोई पूछे : ‘हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?’ आप कह सकें : ‘हिंदी साहित्य यहाँ से शुरू करें’ :

हिंदी साहित्य का मतलब

स्कूल और कॉलेज तक मैंने हिंदी को सिर्फ़ उतना ही पढ़ा जितना हमें पढ़ाया गया और जितने की ज़रूरत उस समय महूसस होती थी या यूँ कह लीजिए पेपर में लिखने मात्र के लिए जितने की ज़रूरत पड़ती थी।

कविता से वही माँग करें, जो वह दे सकती है

मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडम्बनापूर्ण लगने लगती है।

हिंदी साहित्य के इतिहास की क्लास

ज़िंदगी हमारी सोच के परे चलती है, यह बात हम जितनी जल्दी समझ लेते हैं, उतना ही हमारे लिए अच्छा होता है। हर बार आपकी बनाई हुई योजना काम कर जाए ऐसा नहीं होता… कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।

पहाड़ पर पिघलते मुहावरे

भाषा और दृश्य के संबंधों पर विचार करते हुए मुझे एक बार विचित्र क़िस्म की अनुभूति हुई। मुझे लिखे हुए शब्द रेखाचित्र से दिखने लगे। ‘हाथी’ लिखे हुए शब्द में ‘ह’ और ‘थ’ दिखने की बजाय मुझे एक समूचे हाथी का चित्र दिखने लगा। मैंने अपने एक मित्र से पूछा कि भाषा और चित्रकला में क्या भेद है?

हिंदी का लाइव काल

भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की मासिक पत्रिका ‘आजकल’ ने अपने दिसम्बर-2020 अंक को ‘डिजिटल मंच पर हिंदी साहित्य’ विषय पर केंद्रित किया है। इस प्रसंग में एक प्रश्नावली मुझे भी इस आग्रह के साथ ई-मेल की गई कि मैं इस अवसर के लिए आयोजित परिचर्चा का हिस्सा बनूँ।

हिंदी में दाख़िला

नौकरी और पढ़ाई दोनों एक साथ करना आसान नहीं होता। आपको बहुत बार जिस जगह होना चाहिए, आप वहाँ नहीं हो पाते… और यह कोई नई बात तो नहीं है, ऐसा अक्सर बहुतों के साथ और बहुत बार होता है।

मैंने हिंदी को क्यों चुना

मैं अब सबके साथ होते हुए भी अकेला महसूस करती थी। ऐसा नहीं है कि मेरे पास दोस्तों की कमी थी, लेकिन मैं उन सबके बीच में होते हुए भी उन लोगों को अपने दिल की बात नहीं बता पा रही थी।

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