उजाले के लिए

जीवन इतना जटिल कभी नहीं था। अभी तक मन उदास था। अब जीवन उदास लगता है। अंजान दुःख घेरे हुए हैं—जैसे : किसी ने एक जगह खड़ा करके बॉक्स से ढक दिया है, और उस बॉक्स पर बड़ा-सा पत्थर रखकर भूल गया है।

इस दौर में हँस पाना एक वरदान है

जब कोरोना दुनिया में तबाही मचा रहा था। तब मन में आता था, भारत में ऐसा हुआ तो क्या होगा? हमारे आस-पास ऐसा हुआ तो क्या होगा? कैसे सँभलेंगे हम? कैसे फिर से खड़े होंगे? इतना सब कैसे बर्दाश्त करेंगे? लेकिन अब लगता है, वास्तव में आदमी किसी भी परिस्थिति का आदी हो सकता है।

साथ निभाने की कला

सम्बन्धों के बिना मानव जीवन कितना शांत और सरल है। लेकिन ऐसी शांति और सरलता किस काम की जिसमें मानव किसी से दो बातें न कह सके। किसी के ऊपर चिल्ला न सके। उससे झगड़ न सके। झापड़ न मार सके या बदले में उससे झापड़ न खा सके। और अगले ही क्षण उसे प्रेम न कर सके।

ट्विटर फ़ीड

फ़ेसबुक फ़ीड