दुश्मनी जम कर करो लेकिन…

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यह टिप्पणी मैंने जनवादी लेखक संघ के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उस किताब के संकलनकर्ताओं द्वारा की गई विसंगतियों को लेकर की है। मैंने व्यक्तिगत रूप से अपने विचार व्यक्त किए हैं, न कि प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में।

उर्दू सीखने की तमन्ना है तुम्हें, अभी सीन में RULG के सिवा कुछ भी नहीं

उर्दू समय के साथ-साथ हिन्दवी, ज़बान-ए-हिंद, गुजरी, दक्कनी, ज़बान-ए-दिल्ली, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, हिंदुस्तानी और रेख़्ता जैसे नामों से भी जानी-पहचानी गई। व्याकरण और ध्वनि में हिंदी से बहुत निकटता रखने वाली उर्दू का शब्द-संसार अरबी, फ़ारसी, तुर्की, ब्रज और संस्कृत से समृद्ध हुआ है।

जनवाद और साहित्य की तिजारत

आप अपने इर्द-गिर्द भी नज़र दौड़ाएँगे तो जनवाद और प्रगतिशीलता के नाम पर ‘अपनी तरक़्क़ी’ करने वाले असंख्य महारथी मिल जाएँगे।

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