मेरा संपूर्ण जीवन इच्छा का मात्र एक क्षण है

हम नफ़रत करते हुए भी, प्यार करते हैं। हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं। कविता हमारे लिए भावनाओं का मायाजाल नहीं है। जिनके लिए कविता ऐसी थी, वे लोग बीत चुके हैं।

वायरल से कविता का तापमान नापने वालों के लिए

यह पुस्तक विधिवत् लिखी गई पुस्तक नहीं है। यह पिछले छह दशकों से अशोक वाजपेयी के द्वारा कविता के बारे में समय-समय पर जो सोचा-गुना-लिखा गया, उसका पीयूष दईया द्वारा सुरुचि और सावधानी से किया गया संचयन है।

‘जो मनुष्य से परे है, वह भी मनुष्य में शामिल है’

बिना सब कुछ के समाहार के, समावेश के, आप जीवन के एक कण को भी नहीं समझ सकते, सब कुछ मिलकर जीवन बनता है। यहाँ तक कि जो सजीव नहीं है, जैसे वज्र और इसके लिए योग के आसनों के जिन नामों का उपयोग किया गया है, वज्रासन, वह तो निर्जीव है; लेकिन कुछ भी निर्जीव नहीं है।

जब सन्नाटा छा गया पाश की कविता से

9 सितंबर 1950 को तलवंडी सलेम, ज़िला जालंधर में जन्मे थे अवतार सिंह संधू। मगर पाश का जन्म हुआ था 1967 के नक्सलबाड़ी के किसान उभार से। खेतों के इस बेटे ने खेतों और कविताओं दोनों जगह अपना लहू और पसीना बहाया था।

कविता से वही माँग करें, जो वह दे सकती है

मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडम्बनापूर्ण लगने लगती है।

काग़ज़ केवल शब्द लिखने के लिए नहीं बना है

कम बोलना चाहिए। ऐसा इसलिए कि कविता में बोले जाने की बात को ‘कह’ देने की गुंजाइश बनी रहती हैं।

‘कोई भी कवि जन्म से ही कवि होता है’

कविता में हम तो वही विचार, वही अर्थ, वही भाव लिखते हैं जो हम लिखना चाहते हैं, जो हमारे मन में हैं, जो हमें उस वक़्त जकड़े हुए हैं? लेकिन यह बात सही नहीं है। कोई नादान कवि या पाठक ही ऐसी बात कर सकता है।

‘यह दिमाग़ों के कूड़ाघर में तब्दील किए जाने का समय है’

हमें यह उदास स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम अँधेरे में लालटेनें हैं। हमसे रास्ते रोशन नहीं होते किसी और के, हम अपनी विपथगामिता पर चौकसी करते चौकीदार भर हैं।

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