जनवरी एक धुँध भरा सपना है

मुझे अक्सर सुबह-सुबह यह सपना आता है कि हम भाग रहे हैं। मैं भागते हुए बार-बार तुम्हारे चेहरे की तरफ़ देखता हूँ और सपना अचानक यहीं-कहीं तुम्हारी आँखों के पास आकर टूट जाता है। मैं आँखें खोल लेता हूँ। मेरे कानों में फिर भी हम दोनों की मुस्कुराहटों की आवाज़ें गूँजती हैं। मैं बिस्तर पर लेटा हुआ, वे आवाज़ें ध्यान से सुनता रहता हूँ।

‘एक विशाल शरणार्थी शिविर में’

…सभी विस्थापितों को होना था स्थापित। स्थापित होकर सभी को करना था प्रेम। सभी को है अपनी रात और एकांत का इंतज़ार। सभी को लेना था इतिहास से प्रतिशोध। सभी को चाहिए था सपनों के लिए एक बिछौना―अतीत पर पछताने के लिए एक चादर और नींद के लिए एक सिरहाना। फिसलने के लिए तेल चाहिए था सभी को। सभी को चाहिए था चुल्लू भर पानी और एक कमरा।

चलो भाग चलते हैं

ये सच है कि हम हमारे गढ़े हुए तमाम संबोधनों को, दो वर्ण वाले तुकांत शब्दों को; जी नहीं पाएँगे। घर से भाग नहीं पाएँगे। भागने की तमाम वजहें हैं, हम दोनों के पास। हालाँकि भाग जाने के लिए एक वजह ही काफ़ी है। मैं तुम्हें ये नहीं समझाऊँगा कि बंदिशों और विवशताओं में कितना अंतर होता है।

उदास दिनों की पूरी तैयारी

छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नहीं पढ़ी गई चिट्ठियाँ। चाय का आख़िरी घूँट फेंक दिया गया। सूरज छत की बाम पे लोट गया। रात गिरने ही वाली थी कि ठिठक गयी लैम्पपोस्ट और ट्रैफ़िक सिग्नल की गोद में।

अक्टूबर किसी चिड़िया के बिलखने की आवाज़ है

मैं तुम्हारे नाम लिखा गया एक प्रेमपत्र था, जिसे अधूरा पढ़कर छोड़ दिया गया। लेकिन इसके अक्षरों पर जितनी बार तुम्हारी अबोध उँगलियाँ फिरीं, एक लोमहर्षक धुन गुँथती चली गई। वह धुन इस उदास अक्टूबर का विरह संगीत है। यह जिया हुआ संगीत, जो मेरी आत्मा पर बार-बार बजता है। इसे अनसुना कर पाना ख़ुद को नकारने जैसा है।

जीवन अपने भाग्य के ख़िलाफ़ आमरण अनशन है

मैं कुछ ना कुछ ऐसा करता रहता हूँ कि मुझे अपने आप से कोफ़्त होने लगती है। यही कोफ़्त फिर एक हँसी में बदल जाती है। पिछले बीस दिनों से डायरी का एक पन्ना भी नहीं लिखा। सोचा था कि खूब लिखूँगा। लेकिन सब सोचा हुआ ही रह गया। हाँ, कुछ छोटी-मोटी कविताएँ लिखीं। कुछ ख़ास पढ़ा भी नहीं। जबकि पढ़ना चाहिए था। राखी भी आकर चली गई और पंद्रह अगस्त भी।

शहर, अतीत और अंत के लिए

अतीत जो आपके कई सारे अंत से मिलकर बना है, यह आपको इंसान होने का एहसास दिलाता रहता है… आपको भावुक करके, क्रोधित करके, आप छटपटा सकते हैं; क्योंकि आपके हाथ में कुछ नहीं है—सिवाय याद करने के—इसलिए याद करते रहिए—अपने बचपन का अंत, स्कूल के दिनों का अंत, हर उस रिश्ते का अंत जिसमें आप प्रेम महसूस करते थे। अंत से जुड़े रहिए, इंसान बने रहिए।

भूलने की कोशिश करते हुए

सारी आत्महत्याएँ दुनिया छोड़ने के मक़सद से या मर जाने के मक़सद से नहीं की जातीं। हम भूलना चाहते हैं, चाहते हैं कि इतनी ताक़त हासिल कर पाएँ कि साँस लेना भूल जाएँ। एक ऐसी बात भूलना चाहते हैं जिसे भूलने का विकल्प नहीं होता। स्मृति इच्छा-मृत्यु माँगती है, लेकिन पा नहीं सकती।

उदास शहर की बातें

इन दिनों अजीब-सी बेरुख़ी है, मार्च महीने की हवा चुभ रही है। ख़ुद से लड़ाई बढ़ती चली जा रही है। जब लड़ाई ख़ुद से हो तो जीतने में कोई रस नहीं रहता, क्योंकि जो हार रहा होता है; उसमें भी हमारा होना बचा होता है।

तुम गर्मी की सबसे सुंदर शुरुआत

बरस दर बरस घुमक्कड़ी मेरे ख़ून में घुलती जा रही है। ये यायावर सड़कें मुझसे दोस्ती पर फ़ख़्र करती हैं। इन ख़ाली सड़कों पर कोई मेरा इंतजार करता रहता है। उसका कोई भविष्य नहीं है और न ही अतीत! एक सजग वर्तमान है उसके पास। इसी जुगत में सारा जग जाग रहा है। धूप चढ़ते ही मैं उससे मिलूँगी—एयरपोर्ट रोड पर, जहाँ दोनों ओर बोगनवेलिया के गहरे रानी रंग के फूल और उतने ही गहरे हरे रंग के पत्ते मेरा और उसका स्वागत करेंगे।

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