गांधीजी और उनकी वसीयत

बापू अचानक दिवंगत हो गए—‘राम’ को छोड़कर अंतिम समय और कुछ नहीं कह गए। जिन्हें राजगद्दी लेनी थी, उन्होंने तो ले ली; लेकिन उनके दूसरे सपूत भी इस बीच गले के ज़ोर से सिद्ध करते रहे कि बापू के सच्चे उत्तराधिकारी हमीं हैं। शायद ही कोई राजनीतिक दल इस उत्तराधिकार से बचा हो। अब तक तो ‘राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट’ वाली हालत थी। अंत काल तक पछताने के लिए कोई नहीं रहा। लेकिन आज के अख़बार में जब यह ख़बर मैंने देखी तो दंग रह गया—‘‘सरकार चुनाव-बिल पास करके आगामी चुनाव में गांधीजी के नाम का उपयोग अनैतिक घोषित करने जा रही है।’’

रचना की महानता से ही आलोचना महान होती है

आज भी आलोचना, आलोचना के प्रत्ययों, अवधारणाओं और पारंपरिक भाषा से इतनी जकड़ी हुई है कि वह नई बन ही नहीं सकती।

नामवर सिंह की कहानी-आलोचना के अंतर्विरोध और नई कहानी

नई कहानी के दौर में पहली बार कहानी-आलोचना को एक गंभीर विषय के रूप में समझा गया। यह नई कहानी का ही दौर था, जब विभिन्न काव्य-आंदोलनों की तरह कहानी की रचना और पाठ की प्रक्रिया पर गंभीर ‘वाद-विवाद और संवाद’ हुआ। नई कहानी के दौर के बाद कहानी-आलोचना एक बार फिर से हाशिए पर चली गई। कमोबेश यह स्थिति आज भी विद्यमान है।

संस्मरण की पाँचवीं पद्धति

हिंदी समाज में किसी बड़े साहित्यकार की मृत्यु के बाद उन्हें कम से कम पाँच पद्धतियों से याद किया जाता है। औपचारिक स्मरण के अलावा बहुत से लोग अत्यंत विनम्र और सदाशय होकर उनकी महानता को याद करते हैं और इसे एक बड़ी क्षति के रूप में देखते हैं।

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