उम्मीद अब भी बाक़ी है

रवि भाई एक बार बातों-बातों में बतलाए कि भाई, आजकल के युवा कवि अपनी कविता की कमज़ोरियों पर बातें ही नहीं करना चाहते। यदि बातें करो तो आप उनके शत्रु बन जाओ। मुझे पता था कि रवि भाई कविता के कला-पक्ष की तुलना में जन-पक्ष की तरफ ज़्यादा ध्यान देते थे। वह कहते थे कि कविता को आम जन की भाषा के नज़दीक आना चाहिए। कविता के सुपाच्य होने की वे लगातार वकालत करते रहते थे। कविता आसानी से संप्रेषित हो जाए। इसके लिए नए पाठकों का निर्माण और युवा कवियों को प्रोत्साहन देने के लिए ही ‘कवि संगम’ की परिकल्पना उन्होंने की। पहली बार देश भर से चालीस कवियों को उन्होंने निमंत्रित किया। तीस कवियों की उपस्थिति रही।