दो दीमकें लो, एक पंख दो

हमारी भाषा में कहानी ने एक बहुत लंबा सफ़र तय किया है। जो कहानियों के नियमित पाठक हैं, जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में हिंदी में कहानी का जैसे पुनर्जन्म हुआ है। हिंदी की कहानी अब विश्वस्तरीय है और इतनी विविधता उसमें है कि जो पाना चाहें वह आज की कहानियों में मिल सकता है—कहन का अनूठा अंदाज़, दृश्यों का रचाव, कहानी का नैसर्गिक ताना-बाना, सधा हुआ, संतुलित, निर्दोष शिल्प और इन सबके संग जीवन की एक मर्मी आलोचना।

पुकार, जो अनंत कामनाओं का अक्षत जंगल है

कविता शब्द-संभवा है। कविता शब्दों के ज़रिए ही संभव होती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी ‘कविता क्या है’ में लिखा है कि कविता शब्दों का व्यापार है। इसलिए शब्द कवि के सबसे महत्त्वपूर्ण औज़ार होते हैं।

रोज़-रोज़ मुक्तिबोध

उस कमरे में उस रात गहरी चली खोज में ताखे से झाँकती दिख पड़ती है एक बीड़ी और मैं साथी को आवाज़ लगाता हूँ कि आ गए हैं मुक्तिबोध। हम स्तुति-पाठ करते हैं—‘हम घुटने पर नशा-देवता (मुक्तिबोध ने नाश-देवता लिखा है) बैठ तुझे करते हैं वंदन—तेरे अग्निकणों से जीवन…’

‘झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है’

गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

‘मैं ऊँचा होता चलता हूँ’

यह लेख उनके लिए नहीं है जो मुक्तिबोध को जानते हैं, यह लेख उनके लिए है जो मुक्तिबोध को जानना चाहते हैं…

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