रहिमन दाबे ना दबैं जानत सकल जहान

रहीम की कविता समय की कलादीर्घा में लगी हुई एक अद्भुत कला-प्रदर्शनी है। उनकी कविता में चार सौ साल पुराने भारतीय जीवन के क्लैसिक चित्र मिलते हैं। वे चित्र कलात्मक ढंग से जीवन की मर्मस्पर्शी सच्चाइयों का बयान करते हैं।