वसंत की चोट सबसे मारक होती है

वसंत के गर्भ में गर्मियों के बीज होते हैं। आने वाली बेदर्द लू अपने पाँव सिकोड़े सुस्ता रही होती है। उसके चेहरे पर गुज़री सर्दी की ठिठुरती खरोंचें हैं। मैं मानती हूँ कि वसंत को देखने का यह बीमार तरीक़ा है, लेकिन यहाँ कौन बीमार नहीं है। महत्त्वकांक्षाओं से लस्त-पस्त लोग मुझे कभी स्वाभाविक नहीं लगे। मैं स्मृतियों के बोझ से पीड़ित हूँ।

होली है आनंद की

फूलों में काँटे भी होते हैं। कुछ नीची प्रकृति के लोग यदि बेहूदे स्वाँग भरते हों या गंदे इशारे करते हों तो आश्चर्य नहीं है। उससे होली की पवित्रता में कुछ दोष नहीं आता है। इससे उल्टी लोगों की परीक्षा हो जाती है। कुछ लोग होली के दिन अधिक शराब पीकर शराबी की ख़राबी दिखाते हैं। होटलों और दूकानों पर पीकर सभा में आकर शराब के विरुद्ध लेक्चर देने वालों से यह लोग तब भी भले हैं।

रोशनी की प्रजाएँ

दीपावली अर्थात् नन्हे-नन्हे दीपकों का उत्सव। रोशनी के नन्हे-नन्हे बच्चों का उत्सव! ‘जब सूर्य-चंद्र अस्त हो जाते हैं तो मनुष्य अंधकार में अग्नि के सहारे ही बचा रहता है।’ ‘छान्दोग्य उपनिषद्’ के ऋषि का यह बोध हमारे दैनिक अनुभव के मध्य होता है। एक-एक नन्हा दीपक सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतिनिधि बनकर हमारे घरों… continue reading

टी-ब्रेक और नक़द व्यवहार

‘खरमिटाव’ अवधी प्रदेश के एक बड़ी पट्टी में प्रचलित शब्द है। इसका चलन धूमिल तो हुआ है, लेकिन बंद नहीं हुआ। इसका साफ़ कारण यह है कि इस शब्द में ऐसे साभ्यतिक इशारे मौजूद हैं, जिनसे जीवन-कर्म का स्वाभाविक मर्म उद्घाटित होता है।

एक चारपाई, कुछ चेहरे और टेढ़े मुँह चाँद की ऐयारी उपस्थिति

चारपाई दरअस्ल चारपाई नहीं होती। उसके साथ एक दर्शन जुड़ा रहता है। उसका अपना इतिहास है और उसकी एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह भारत का एक अद्भुत आविष्कार है। यह काष्ठ शिल्पकारों के उस ‘नॉलेज’ की जीवंत और साहस-गाथा है, जिसने ‘सुख’ और ‘ज्ञान’ को ब्राह्मणों के एकाधिकार से मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक काम किया।

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