एक लेखक को किन चीज़ों से बचना चाहिए?

न समझे जाने के डर से—एक लेखक पर यह दबाव बहुत बड़ा होता है कि उसका लिखा ठीक उसी तरह समझा जाए जिस तरह वह लिख रहा है। आसान ज़ुबान में लिखने की सलाह इसी से निकलती है। लेकिन लेखक को कई बार वह भी कहना होता है जिसे समझने के लिए कोशिश करनी पड़े, संवेदना और विचार के नए इलाक़ों में जाना पड़े। ऐसा कुछ कह सकने के लिए लेखक को इस डर से मुक्त होना होगा कि पता नहीं उसका लिखा समझा जाएगा या नहीं।

प्रेत को शांत करने के लिए

‘‘मनहूसियत का काम मत करो।’’—नानी ने जिन शब्दों में कहा था, उसके पीछे की भावना मैं बरसों खोजता रहा। नहीं मिली। न तो वो क्रोध था, न क्षोभ, न पीड़ा, न सलाह, न तंज़, न हँसी।

लिखने ने मुझे मेरी याददाश्त दी

मेरे नाना लेखक बनना चाहते थे। वह दसवीं तक पढ़े और फिर बैलों की पूँछ उमेठने लगे। उन्होंने एक उपन्यास लिखा, जिसकी कहानी अब उन्हें भी याद नहीं। हमने मिलकर उसे खोजना चाहा, वह नहीं मिला। पता नहीं वह किसी संदूक़ का लोहा बन गया या गृहस्थी की नींव।

ईश्वर अनाम न रहे, इसीलिए देवता हैं

साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।

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