ज़िंदगी के दिन देकर ज़िंदा रहने का मोह

मैं सरल से सरल भाषा में अपनी बात कहना-लिखना चाहता हूँ। क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करके मुझे अपना पांडित्य सिद्ध नहीं करना और न ही अपने आपको विद्वान ठहराना है। सामान्य से भी सामान्य आदमी उसे पढ़-समझ सके, उसे वह अपनी ही भाषा लगे और उस भाषा से उसे डर, संकोच न हो यही मेरा प्रयास रहता है।

अव्यवस्था और अराजकता

हर व्यक्ति अपने से कमज़ोर व्यक्ति पर अपना रोब, घमंड, ताक़त दिखाकर अपने शक्तिशाली होने के भ्रम-अहं को संतुष्ट करता है। अपने से कमज़ोर के मुक़ाबले अपनी श्रेष्ठता साबित करना, सशक्तता दिखाना न मात्र मानवीय चरित्र है, अपितु प्राणी मात्र का यही चरित्र है।

सुनहरा और शोर भरा सौंदर्य

राजूसिंघ आकर मेरी नींद का बेरी बना। दुपहर हो चुकी थी। देर रात तक जागता रहा था, इसलिए बहुत देर तक सोता रहा था। राजूसिंह अपने घर से तसला भर विश्नान लाया था मेरे लिए और उसे जल्द खाकर तालाब में नहाने चलने की हिदायत दे रहा था।

मेरी कोई स्त्री नहीं

सियोत से लौट आने के बाद दो दिन से खेत पर ही पड़ा हूँ। यूँ पड़ा रहना मेरे स्वभाव के विपरीत रीति है। गतिशीलता, भटकन (मन और तन दोनों की) और उत्पात में ही मेरी आभा है और मुझे सुभीता है। मैं बहुत देर तक कहीं पड़ा नहीं रह सकता और बहुत देर तक एक जगह खड़ा भी नहीं रह सकता। लेकिन छड़ा रहने का गुण (अवगुण) मैंने ख़ुद विकसित किया है और जड़ा तत्त्व मुझमें स्वभाव-गत है।

लहू में आग और खाल में राग

सुबह-सवेरे मेरी आँख खुली तो सामने ग़ज़ब दृश्य था। बकरियों के बीच ज़मीन पर रामा लेटा पड़ा सो रहा था और बकरियाँ मिमियाते हुए उसका मुँह चाट रही थीं। रात को हम शराब पीकर नशे में ढेर हो गए थे। रात को कुछ खाया न था, इसलिए सुबह-सुबह बहुत ज़ोरों की भूख लगी थी। परंतु चूल्हे पर चढ़ाया गया खारी-भात का पतीला ग़ायब था।

प्रकृति का चरित्र और कोरोना-कारावास

कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते इंसान के संसार के गति रुक-सी गई है; लेकिन प्रकृति अब भी कितनी सहज, सरल और सुंदर ढंग से गतिमान थी। प्रकृति का चरित्र कितना संस्कृत और सुचारु है! किसी को भी ख़लल डाले बिना, हानि पहुँचाए बिना ज़रूरत भर का लेना और लौटाना।

हमारा और उनका नुक़सान

भीगी मिट्टी की मादक ख़ुशबू ने नासिका-द्वार से घ्राणेंद्रिय पर और पक्षियों के कलहनुमा कलशोर ने कानों के परदों के मार्फ़त श्रवणेंद्रिय पर दस्तक देकर सुबह-सुबह हमें नींद-मुक्त किया। रात भर मेह बरसा था और नभ अब भी मेघाच्छादित था।

रात्रि की भयावहता में ही रात्रि का सौंदर्य है

कोरोना महामारी के चलते प्रधानमंत्री महोदय ने इक्कीस दिनों तक पूरे राष्ट्र को लॉकडाउन कर दिया है। देश में कोरोना महामारी का संक्रमण फैलने का डर है और देस में भुखमरी का संक्रमण फैलने का।

ट्विटर फ़ीड

फ़ेसबुक फ़ीड