स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार

किसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ को देखने के इतने दिनों (लगभग 40-50 दिनों) के बाद भी उस पर लिखा नहीं और लिखने की इच्छा ने जब पीछा नहीं छोड़ा तो शायद इस फ़िल्म से पीछा छुड़ाने के लिए लिखना जरूरी लगा।

एक मुकम्मल तस्वीर का सफ़र

साल 2019 की फ़्रांसीसी फ़िल्म ‘पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी ऑन फ़ायर’ इस सदी की उन चुनिंदा फ़िल्मों में से एक है, जिनका ज़िक्र ज़रूरी है। इस फ़िल्म की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि आप कोई भी कोण, कोई भी दृश्य या कोई भी स्पॉट उठा लें; यह फ़िल्म ज़ेहन पर चित्रकारी-सा नक़्श उभारती है। इस फ़िल्म को कान फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा के सम्मान से नावाज़ा गया। इसके साथ ही सेलीन सियम्मा को यूरोपीय फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का पुरस्कार दिया गया।

शराबी क़ौम पर कुछ नोट्स

शराबियों को एक ‘अस्मितामूलक’ इकाई/क़ौम (आइडेंटिटी) के रूप में देखना चाहिए कि नहीं? सुनने में यह अतिरंजित लग सकता है, लेकिन क्रूर सच्चाइयाँ अक्सर ही अतिरंजित लगती हैं।

कमलेश्वर की लिखी एक दुर्लभ फ़िल्म

‘फिर भी’ कैमरे की मदद से रचा गया एक साहित्य है। नई कहानी के ज़रिए जिस तरह भारतीय मध्यवर्गीय जीवन के नए पहलू उद्घाटित हुए थे, वैचारिक खुलेपन को बयार चली थी… उसे काफ़ी हद तक इस फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।

एक कलाकार की हैसियत से

‘सैक्रिफ़ाइज़’ तारकोवस्की की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई। एक हफ़्ते बाद जब अवार्ड सेरेमनी में तारकोवस्की का नाम लिया गया, तो उनका चौदह-पंद्रह साल का बेटा अन्द्रिउश्का (Andriushka) मंच पर गया। यह फ़िल्म अन्द्रिउश्का को ही समर्पित थी

हिंसा और बर्बरता के आवरण में प्रेम और सौंदर्य की कल्पना

किम की डुक का सिनेमा सही मायनों में और मुख्यत: वीभत्स रस का सिनेमा है। इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए दर्शक को किसी ख़ास सिनेमाई समझ की ज़रूरत नहीं।

एक उपन्यास जो आज भी बेचैन कर देता है

मैंने क़रीब 17-18 साल की उम्र में जब पहली बार इस उपन्यास को पढ़ा था तो हर पन्ने को पलटते हुए एक अजीब-सी बेचैनी मन में उठती जाती थी। गोरखपुर की लाइब्रेरी में बहुत-सी पुरानी दुर्लभ किताबों का ज़ख़ीरा था, जिसमें रेनॉल्ड्स की ‘लंदन रहस्य’ सीरीज़ और मोरिये की ‘रेबेका’ का हिंदी अनुवाद भी मौजूद था।

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