‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’

व्योमेश शुक्ल के अब तक दो कविता संग्रह, ‘फिर भी कुछ लोग’ और ‘काजल लगाना भूलना’ शाया हुए हैं—जिनमें तक़रीबन सौ कविताएँ हैं, कुछ ज़्यादा या कम। इन दोनों संग्रहों की‌ कविताओं पर पर्याप्त बातचीत-बहस हो चुकी है। व्योमेश जी के कवि पर भी ख़ासी बातचीत हिंदी के परिसर में होती रहती है। कविता पढ़ने के अपने शुरुआती समय से ही व्योमेश जी को मैं पढ़ता रहा हूँ और मुतासिर रहा हूँ।

फूँक-फूँक कर लिखी गई एक किताब

मुझे होश तब आया जब सामने की गाड़ी में हरकत हुई और दृश्य आगे बढ़ने लग गया। मैं वक़्त में अभी ठहरने ही पाई थी कि जाम घुटनों के बल सरकने लगा। यह धोखा था। पर नहीं भी था।

कबीर अपनी उपमा आप हैं

कबीर की पिछली जयंती पर कबीरचौरा मठ ने हमेशा की तरह बनारस में एक धड़कता हुआ आयोजन किया था, जिसमें और चीज़ों के अलावा एक सत्र में कुछ अच्छी बातचीत भी हुई। यहाँ प्रस्तुत नोट्स उसी सत्र में लिए गए हैं।

प्यास के भीतर प्यास

विजयदेव नारायण साही के आलोचक-व्यक्तित्व की कहानी यहाँ नहीं, भदोही से सुनी जानी चाहिए। समाजवादी आंदोलन, क़ालीन मज़दूरों के संगठन, सोशलिस्ट पार्टी के सम्मेलनों और शिक्षण-शिविरों के ज़रिए सक्रिय राजनीतिक कर्म की प्रत्यक्षता ने उन्हें ऐसा आत्मविश्वास दिया कि वह आलोचना को राजनीति से स्वायत्त कर सके।

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