दुश्मनी जम कर करो लेकिन…

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यह टिप्पणी मैंने जनवादी लेखक संघ के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उस किताब के संकलनकर्ताओं द्वारा की गई विसंगतियों को लेकर की है। मैंने व्यक्तिगत रूप से अपने विचार व्यक्त किए हैं, न कि प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में।

जनवाद और साहित्य की तिजारत

आप अपने इर्द-गिर्द भी नज़र दौड़ाएँगे तो जनवाद और प्रगतिशीलता के नाम पर ‘अपनी तरक़्क़ी’ करने वाले असंख्य महारथी मिल जाएँगे।

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