विचारों में कितनी भी गिरावट हो, गद्य में तरावट होनी चाहिए

अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।

वसंत की चोट सबसे मारक होती है

वसंत के गर्भ में गर्मियों के बीज होते हैं। आने वाली बेदर्द लू अपने पाँव सिकोड़े सुस्ता रही होती है। उसके चेहरे पर गुज़री सर्दी की ठिठुरती खरोंचें हैं। मैं मानती हूँ कि वसंत को देखने का यह बीमार तरीक़ा है, लेकिन यहाँ कौन बीमार नहीं है। महत्त्वकांक्षाओं से लस्त-पस्त लोग मुझे कभी स्वाभाविक नहीं लगे। मैं स्मृतियों के बोझ से पीड़ित हूँ।

जनवरी एक धुँध भरा सपना है

मुझे अक्सर सुबह-सुबह यह सपना आता है कि हम भाग रहे हैं। मैं भागते हुए बार-बार तुम्हारे चेहरे की तरफ़ देखता हूँ और सपना अचानक यहीं-कहीं तुम्हारी आँखों के पास आकर टूट जाता है। मैं आँखें खोल लेता हूँ। मेरे कानों में फिर भी हम दोनों की मुस्कुराहटों की आवाज़ें गूँजती हैं। मैं बिस्तर पर लेटा हुआ, वे आवाज़ें ध्यान से सुनता रहता हूँ।

इसक की तीसरी सूची

वर्ष 2021 और 2022 में हमने ‘हिन्दवी’ पर ‘इसक’ के अंतर्गत ऐसे 21 कवियों की कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिन्होंने गए इक्कीस वर्षों में हिंदी-कविता-संसार में अपनी अस्मिता और उपस्थिति को पाया और पुख़्ता किया। ‘इसक’—यानी इक्कीसवीं सदी की कविता का संक्षिप्त रूप—की परिकल्पना को प्रकट और स्पष्ट करते हुए हम कहते आए हैं कि इसक हमारी मुख्य योजनाओं में सम्मिलित है और यह हमारा वार्षिक आयोजन है। इस प्रसंग में ही अब प्रस्तुत है—इसक-2023

मैं विवेक के साथ क्षण को जीता हूँ

प्रियंवद (जन्म : 1952) समादृत साहित्यकार हैं। वह कथा और कथेतर तथा संपादन और सांस्कृतिक सक्रियता के मोर्चों पर अपनी मिसाल आप हैं। जीवितों के हिंदी कथा संसार में वह अकेले हैं जिनके पास सर्वाधिक स्मरणीय, उल्लेखनीय और चर्चित कहानियाँ हैं। आज उनका 70वाँ जन्मदिन है। उन्हें मंगलकामनाएँ देते हुए यहाँ प्रस्तुत है उनसे एक नई और विशेष बातचीत :

‘एक विशाल शरणार्थी शिविर में’

…सभी विस्थापितों को होना था स्थापित। स्थापित होकर सभी को करना था प्रेम। सभी को है अपनी रात और एकांत का इंतज़ार। सभी को लेना था इतिहास से प्रतिशोध। सभी को चाहिए था सपनों के लिए एक बिछौना―अतीत पर पछताने के लिए एक चादर और नींद के लिए एक सिरहाना। फिसलने के लिए तेल चाहिए था सभी को। सभी को चाहिए था चुल्लू भर पानी और एक कमरा।

मैं नायकविहीन दुनिया में रहने का स्वप्न देखता हूँ

मैं कभी हीरो नहीं होना चाहता था। मैंने कभी कोई स्वप्न ऐसा नहीं देखा जिसमें मैं छिनी उँगली पर गोवर्धन उठाए खड़ा हूँ और लोग उसकी छाया में मेरी प्रशस्ति में गीत गा रहे हैं। सख़्त चेहरों और रोबीली आँखों से मुझे सदैव विकर्षण ही रहा। रोने इच्छा होने पर मैंने बस रोना चाहा है। यह बात अलग है कि मेरा चाहा कम ही पूरा हुआ। खुलकर रोने की इच्छा अभी इतनी नहीं खुली कि मैं खुलकर रो सकूँ।

भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स

हिंदी साहित्य में भाभी जिस रूप में उतरी है, उसमें सत्य से अधिक सुहावनापन है। आज भी पुरुष की बहुपत्नीक और स्त्री की बहुपति प्रवृत्तियाँ, जो तहज़ीब के नीचे से अब भी रिसती रहती हैं और साहित्यदानों में दिलबस्तगी पैदा करती आई हैं, उन्हीं की छानबीन में कहीं भाभी-प्रॉब्लम का भी संतोष मिल जाएगा। पर चूँकि विवाह का टेकनीक पेचीदा और गुट्ठल हो गया है और आर्थिक उलझन और पेचो-ताब ने ‘परिवार’ को एकबारगी जड़ से हिला दिया है, भाभी वहाँ से निकलकर हिंदी के बुतशिकन लेखकों का ‘टूल’ बन गई है।

साहित्य के दरवाज़े के द्वारपाल की भूमिका में

भाषा को तमीज़ से बरतना कविता-कर्म की बुनियादी शर्त है। अनुचित शब्द चयन कवि और कविता दोनों के लिए प्राणहंता है। कविता में किसी शब्द का कोई बदल/पर्याय नहीं होता।

एक नैतिक उपदेश

भूख और भोजन कुछ इस प्रकार के विषय हैं कि इन पर नैतिक उपदेशों की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह समय नैतिकता और उपदेश दोनों के लिए ही कठिन है। इसकी पड़ताल की जानी चाहिए कि बाल-बच्चेदारों और गृह-त्यागियों दोनों ने ही नैतिकता और उपदेश से सलीक़े का मामला रखना बंद क्यों कर दिया!

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