किट्टू की कहानी

यह कहानी नहीं है। यह बस एक छोटा-सा इंटरव्यू है—कहानी-सा। इसका नायक किट्टू है। वह 35 साल का है। वह 31 का था, जब उसे यह पता चला था कि वह एच.आई.वी. पॉज़िटिव है।

किट्टू की कहानी में कोई भारी संघर्ष नहीं है—न कोई अद्भुत पल, न कोई अवेकनिंग; पर मुझे यह पसंद है, क्योंकि इसमें सच्चाई और सरलता है। उस इंसान को जिसे पता है कि शायद उसकी ज़िंदगी बाक़ी ज़िंदगियों से थोड़ी कम है, फिर भी वह जीता है और गाता है और रोता भी है।

किट्टू हेट्रोसेक्सुअल है। उसे एच.आई.वी. ड्रग्स के सेवन से हुआ। वह मुझसे कहता है :

‘‘तुम क्या सुनना चाहती हो? मुझे एच.आई.वी. कैसे हुआ? मैं इससे पहले कैसा था और अब कैसा हूँ? ये दिलचस्पी नई है तुम्हारी? तुम दोस्त की तरह से सुनना चाहती हो या मैं भी एक सब्जेक्ट हूँ?”

मैं जल्द ग़ुस्सा होती हूँ। इसलिए उसकी बातें मुझे तैश में लाने के लिए काफ़ी थीं। फिर भी मैंने चुप रहना ठीक समझा, क्योंकि अपने इस ग़ुस्से की वजह से मैं अपना एक पार्टिसिपेंट गँवा चुकी हूँ। मैंने कहा :

“मुझे पता है कि तुम काफ़ी पढ़ते हो और तुम्हारी भाषा में वह घमंड और एरोगेंस सुना जा सकता है। मुझे जो समझकर बताना चाहो तुम बता सकते हो।”

‘‘ओह! और तुम्हारी भाषा, क्या उसमें मसीहा बनने की चाहत नहीं सुनाई देती।’’

‘‘ये मेरे बारे में नहीं है।’’

‘‘पर हर रिसर्च हमारा आईना है—किसी महान विद्यार्थी के ही शब्द हैं।’’

‘‘तुम्हें मुझे ताना मारने की ज़रूरत नहीं है। तुम इस शोध के लिए बाध्य नहीं हो। नहीं बताना है तो मैं कुछ और रास्ता तलाश करूँगी। तुम आख़िरी रास्ता नहीं हो।’’

‘‘यही अंतर है मुझमें और उनमें जिन्होंने इस जीवन को अपनी बपौती समझ लिया है। मैं अब इस तरह बात नहीं कर पाता। मेरा हर रास्ता अब जीने में जाता है—जो सामने आ जाए उसे जीने में। मैं अब इसके सिवा दूसरे रास्ते नहीं तलाशता।’’

‘‘मुझे माफ़ कर दो। शायद इन चार सालों के संबंध में, मैं तुम पर अधिकार समझने लगी हूँ। मुझे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी।’’ (मेरी आवाज़ में एक कुढ़न थी।)

‘‘अरे तुम कितना ग़ुस्सा होती हो! हर बात पर अपने अधिकार नहीं छोड़ देने चाहिए। तुम मेरे कुछ अब तक बचे हुए क़रीबी दोस्तों में से एक हो—भले ही सेवियर कॉम्पलेक्स के साथ।’’ (हा हा हा।)

‘‘बैठो न। अच्छा लगता है जब आती हो। आख़िर केवल कुछ लोग ही जानते हैं कि मैं अपनी ज़िंदगी के उस दौर पर हूँ; जहाँ एक फ़्लू भी आपको यह सोचकर सोने नहीं देता कि अरे यार ये ठीक नहीं हुआ तो क्या!’’

‘‘मैंने तुमसे कहा तो है कि लोग बाहर बहुत सपोर्टिव हैं। तुम यदि बता दोगे तो तुम्हें एक कम्युनिटी मिल जाएगी। मेरे दोस्त भी तुम्हारी बहुत मदद कर सकते हैं।’’

‘‘पहली बात मुझे लोग पसंद नहीं, कभी नहीं पसंद थे। एक बीमारी आपके शरीर को बदल सकती है, आपकी आत्मा को नहीं। तुम्हारे कोई भी दोस्त मुझे अच्छे नहीं लगते। ऐसा नहीं है कि वे बुरे हैं, पर वे सब क्रांति में विश्वास करते हैं—तुम्हारी तरह। मैं इस आइडिया के साथ नहीं जी पाता। मुझे तुम लोग छलावे में जीने वाले लगते हो। फ़किंग सेवियर्स।’’ (वह आँख मारता है।)

‘‘तुम्हें ऐसे पूर्वाग्रहों में नहीं रहना चहिए। तुम एक को भी नहीं जानते हो। तुम उनसे मिले तक नहीं हो।’’

‘‘आई लव दिस थिंग अबाउट यू। यू ऑलवेज फ़ाइट फ़ॉर व्हाट एंड हु यू लव। नो मैटर हु इज़ इन फ़्रंट। आई लव यू फ़ॉर दिस ओनली।’’

मैंने फुसफुसाकर कहा : “फ़क ऑफ़…” और फिर कहा :

‘‘मुझे अपने रिसर्च पर बात करनी है। तुम समझ क्यूँ नहीं रहे हो! मेरे लिए एक शहर से दूसरे शहर आना और फिर कुछ कंस्ट्रकटिव न करना, बेहद निराशाजनक है। हमारे झगड़े और ये बहसें अनंत हैं। तुम्हारा केस एक मदद हो सकता है। पर अगर ये बातें ऐसे ही चलती रहीं तो मेरा यहाँ होना बेकार हो जाएगा—मेरी रिसर्च के लिहाज़ से।’’

‘‘यही तो मैं जानना चाहता हूँ कि मैं एक सब्जेक्ट हूँ या दोस्त हूँ।’’

“तुम दोनों हो और मैं पूरी कोशिश कर रही हूँ कि मैं ये सब लिखते हुए भी सेंसटिव रहूँ और मैं किसी भी व्यक्ति के नाम के आगे सब्जेक्ट या केस न लिखूँ, क्योंकि यह मुझे भी उनकी इंसानी भावनाओं को चोट पहुँचाने जैसा लगता है। इसलिए ही मैं इसको नैरेटिव कहती हूँ। इसमें मैंने कहीं भी ‘सब्जेक्ट’ शब्द का प्रयोग नहीं किया है।’’

‘‘अरे इतना क्या परेशान हो रही हो! मैं तो बस मज़ाक़ कर रहा था।” उसके चहेरे पर शरारत थी। उसने आगे कहा :

‘‘देखो तुम्हें ये पता है कि मुझे एच.आई.वी. हुआ क्यों है?’’

‘‘हम्म।’’

‘‘उससे पहले की कहानी भी जानती हो?’’

‘‘नहीं, मैं तुमसे सुनना चाहती हूँ दुबारा, जबकि मैं जानती हूँ कि यह तकलीफ़देह है।’’

एक छोटी-सी चुप के बाद हम बात शुरू करते हैं। उसने कहा :

‘‘मैं कभी सामान्य नहीं था। मैं उतना ही अलग था जितना हो सकता था। मेरे साथ के लोग जिन चीज़ों में ख़ुशी तलाश करते थे, मैं नहीं कर पाता था। मैं दब्बू और दुबला था। पिता से मेरे संबंध उतने ही थे, जितने हो सकते थे और माँ को पिता की चाकरी से ही फ़ुर्सत नहीं थी। पर मेरे भीतर एक क्रेज़ी सपना पल रहा था—संगीत का। हमारे छोटे शहर में तब यह सपना नहीं, बेवक़ूफ़ी थी। मैंने पापा से कहा कि मुझे संगीत सीखना है। उन्होंने हाँ कर दी। मुझे लगा था कि मुझे बग़ावत करनी होगी, जिसके लिए मैंने ख़ुद को तैयार भी कर लिया था। मैंने अपने दिमाग़ में कई आगामी बहसें जीत ली थीं। पर यह सब कुछ बस हो गया। क्या तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है? जब तुम सोचो कि तुम्हें झुकना ही नहीं है, पर अचानक कोई लड़ाई ही न लड़नी पड़े। स्ट्रेंज न!!!’’

‘‘या, आई टोटली गेट या! इट्स स्ट्रेंज एंड क्रेज़ी।’’

‘‘तब से मेरी ज़िंदगी में दो चीज़ें हो गईं—संगीत और किताबें। मुझे दोनों में बहुत अंतर नहीं समझ आता था। ये दोनों चीज़ें मुझे मेरे ज़िंदा होने का एहसास कराती हैं। इसमें शर्त यह भी थी कि मुझे आम लड़कों की तरह इंजीनियर बनना है। मैंने वह भी कर दिखाया और एक नया इंसान बनकर आया—म्यूजिक इंजीनियर। बस फिर अपना शहर तो छूट चुका था। अब यह बड़ा शहर ही घर था। मैं बहुत नहीं बदला था। अकेले रहता था, पर पैसा और अकेलापन मुझे वहाँ ले गए, जहाँ आज मैं हूँ। ड्रग्स—शुरुआत में बस शुरुआत में और इसके बाद कोई वापसी नहीं…। यह बस है। एक दिन सब कुछ वैसा ही था—वैसा ही अकेलापन, संगीत, किताबें… बस एक चीज़ पॉज़िटिव हो गई और वह था मैं! मैं कालका जी मेट्रो स्टेशन पर बैठा रहा, रोता रहा। इस बार—पहली बार मुझे किसी की ज़रूरत थी। मैं सोच रहा था कि ऐसे ही मर जाऊँ क्या? तुम्हें पता है कि दिल्ली अजीब जगह है! एक-दो लड़कियाँ रुकीं! शायद रोता हुआ आदमी उन्होंने पहली बार देखा! एकाध ने मदद भी देने की कोशिश की, पर मैं ख़ुद को कभी समझ ही नहीं पाया। यार इतनी-सी ज़िंदगी में किसी ने ‘आई मिस यू’ का मैसेज तक नहीं किया था। मैंने कभी किसी को इतना अंदर आने ही नहीं दिया। शादी कभी करनी नहीं थी, पर मैं प्रेम भी नहीं महसूस कर सका था। अब सीधे मौत को अपने सामने देख रहा था।

काउंसलर ने बहुत समझया कि सब सामान्य है। बस दवाइयाँ चलेंगी। पर मैं तो सामान्य था ही नहीं न। मेरे अंदर यह हिम्मत ही नहीं है कि अम्मा और बाऊ को बताऊँ कि मुझे हुआ क्या है। वे मेरी शादी की बात अब नहीं करते हैं। वे भाई के नाती-पोतों से सुखी हैं।

बस मैं अपनी जान नहीं ले पाया।’’

‘‘तुमने ड्रग्स लेना बंद कर दिया?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘आर यू क्रेज़ी! इट्स हार्मफ़ुल विथ मेडिसिन!’’
‘‘कैन यू प्लीज़ स्टॉप लेक्चारिंग, आई एम लिविंग दिस लाइफ़, आई नो मोर देन यू। कैन यू गिव मी सिंगल रीजन टू लिव लॉन्ग लाइफ़…”

‘‘इट्स योर लाइफ़ हाऊ कैन आई इवन गिव एनी रीजन…’’

‘‘सो जस्ट लिसेन… कुछ समय बाद चीज़ें ठीक लगने लगीं। रेग्युलर काउंसलिंग से आई फ़ील बिट बेटर। एक ही इंसान मेरी ज़िंदगी के इतने क़रीब है—मेरा काउंसलर।’’ (हा हा हा)

‘‘तुम्हें कभी दुःख नहीं होता? यह सवाल बहुत बचकाना है? पर फिर भी पूछ रही हूँ! दुःख की परिभाषा बदल जाती है।’’

‘‘दुःख होता है, पर अब मैंने डरना छोड़ दिया है। मुझे अब किसी चीज़ का डर नहीं महसूस होता है। मैंने इस ख़ालीपन से ही यह सीखा कि जीना हमें मौत के क़रीब बिना जिए ही ले जाता है।’’

‘‘और प्यार?’’

‘‘वो तो मैं तुमसे करता हूँ।’’

‘‘शट अप मैन!’’

‘‘आई एम सीरियस! बहुत पैसे हैं मेरे पास, मस्त मौज करेंगे…’’

‘‘तुम मुझसे प्यार नहीं करती हो या डरती हो कि एक एच.आई.वी. पॉज़िटिव के साथ कैसे जिओगी?’’

‘‘एम आई लुक दिस स्टुपिड?’’

‘‘या…’’ वह ज़ोर से हँसते हुए मेरे ऊपर अपना हाथ रख लेता है—लगभग गले लगा लेने जैसा!

‘‘तुम ये मुझे छेड़ते क्यों रहते हो? प्रेम अलग है मेरे लिए। मैं अजीब हूँ—इस मामले में और यह हर बार मुझ पर घूमकर क्यों आ जाता है। मैं ऐसा नहीं सोचती। मेरे लिए एक अलग दुनिया है—मेरे ख़्वाबों की, जहाँ तुम दोस्त हो। मैं वैसे भी क्या बोलूँ…’’ उसके बग़ल में लेटे-लेटे मैंने एक साँस में यह सब कह डाला।

मुझे उसके साथ इतनी देर तक रहते हुए इस बात का एहसास हुआ कि यही प्यार है। हम इसको केवल स्पर्श से नहीं समझ सकते हैं। कई बार वह बस होता है और आपको सुरक्षित महसूस कराता है, पर हर प्यार आप अपने साथ लेकर नहीं चल सकते हैं। एक बार और मैंने किट्टू की ओर देखा। वह साँवला और दिलकश था। वह अपने में थोड़ा-सा खोया था। वह पता नहीं क्या-क्या पढ़ता रहता था। उसके कमरे में ‘सरस सलिल’ से लेकर कम्युनिस्ट विचारधारा तक का साहित्य था—बेहद अस्त-व्यस्त हालत में। इसके अतिरिक्त सब बहुत सलीक़े से था।

मैंने कुछ और देर वहाँ रुककर महसूस किया कि उसके कमरे की दीवारें नीले रंग की हैं और उन पर एक छिपकली चलती रहती है। उसके टेबल पर बुद्ध की मूर्ति है। ‘‘बुद्ध केवल सजाने के काम ही आते हैं।’’—मैंने करवट लेते हुए कहा।

‘‘हाँ, कोई इतनी फ़ैंसी बातें करेगा तो वह बस टेबल पर आराम ही करेगा न।’’ हम दोनों हँस रहे थे।

‘‘तुमने मौत के डर को खो दिया है क्या?’’

‘‘नहीं, मैंने यह सीख लिया है कि अगर तुम्हें लगे मौत आ रही है तो स्पीड डायल में ऐसे लोगों के नंबर रखो जो तुरंत पहुँच सकें। वैसे मैं बहुत हेल्थी प्लान फ़ॉलो करता हूँ।’’

‘‘और ड्रग्स?’’

‘‘यार वह बस एक एस्केपिस्म है, जो मुझे सच से थोड़ा दूर रखता है और अब बहुत कम कर दिया है। दवाइयाँ ही हैलुशिनेशन देने के लिए काफ़ी हैं। चाय पीओगी?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘तो वो किचन है, जाके बनाओ।’’

‘‘मैं ये सब नहीं करूँगी, मैं मेहमान हूँ।’’

‘‘चलो खाना मैं बनाके खिला दूँगा। पक्का…’’

‘‘अच्छा! कितनी चीनी?’’ यह कहते हुए मैं कॉपी पर उसके नाम पर डन लिखते हुए, वापस उसकी दोस्त हो जाती हूँ।