उनके संदेश ने लोगों का नज़रिया एकदम बदल दिया
गांधी के बचाव में टैगोर का वक्तव्य
शांतिनिकेतन,
6 फ़रवरी 1934
महात्मा गांधी की अभी हाल की गतिविधियों के ख़िलाफ़ हमारे देश के एक ख़ास वर्ग के लोगों में पिछले कुछ समय से मैं विद्वेष की भावना देख रहा हूँ! निष्कपट आलोचना से किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन आलोचना और निंदा में हमेशा से अंतर रहा है।
किसी महापुरुष के लिए तात्कालिक चापलूसी और लोगों द्वारा सस्ते उपहास दोनों का ही बहुत कम महत्त्व होता है और मैं जानता हूँ कि महात्माजी में यह महानता विद्यमान है। लेकिन फिर भी यदि मैंने उनके विरुद्ध चलाए जा रहे निंदास्पद अभियान के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ नहीं उठाई तो मैं अपने कर्तव्य में असफल रहूँगा। क्योंकि महात्माजी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सदियों से दासता की बदौलत आत्म-तिरस्कार और निराशा के दलदल में फँसे लोगों को ऊपर उठाने के लिए बहुत कुछ किया है। जैसे कि रातोंरात उनके आशा और विश्वास के संदेश ने लोगों का नज़रिया एकदम बदल दिया हो। उन्होंने उन लोगों के हृदयों में साहस और आत्मसम्मान भर दिया है जो सदियों से अपमान का भार अपने सिर पर ढोते आ रहे थे और जिन्हें विश्वास था कि इसका कभी अंत नहीं होने वाला और ऐसा जादू करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा में श्रद्धांजलि अर्पित करने के सिवाय और हम कर ही क्या सकते हैं।
ऐसे सच्चे समर्पित जीवन की निंदा करना सिर्फ़ इसलिए कि कभी-कभी उनके विचार हमारे विचारों से मेल नहीं खाते, इस तरह की कृतघ्नता तो अधमता की हद है। सार्वजनिक रूप से मैंने उनसे अक्सर असहमति दिखाई है और यहाँ तक कि अभी हाल में बिहार भूकंप के विध्वंस के बारे में ‘दैवी दंड’ के उनके विश्वास के बारे में मैंने आलोचना की है, जिसे उन्होंने अस्पृश्यता के पाप के फलस्वरूप कहा है। लेकिन मैं उनकी धार्मिक आस्था का सम्मान करता हूँ और ग़रीबों के प्रति उनके स्थायी प्रेम के कारण यदि उनके और मेरे विचारों में भिन्नता है तो इसका आदर करता हूँ।
मैं बंगाल में आने के लिए उनका हार्दिक स्वागत करता हूँ और मैं अपने प्रांत के लोगों से निवेदन करता हूँ कि मातृभूमि के लिए समर्पित इस बहुमूल्य जीवन के प्रति आभार प्रदर्शन में मेरा साथ दें।
रवींद्रनाथ टैगोर
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‘महात्मा और कवि’ (नेशनल बुक ट्रस्ट, संस्करण : 2005) से साभार।