गांधीजी और उनकी वसीयत

बापू अचानक दिवंगत हो गए—‘राम’ को छोड़कर अंतिम समय और कुछ नहीं कह गए। जिन्हें राजगद्दी लेनी थी, उन्होंने तो ले ली; लेकिन उनके दूसरे सपूत भी इस बीच गले के ज़ोर से सिद्ध करते रहे कि बापू के सच्चे उत्तराधिकारी हमीं हैं। शायद ही कोई राजनीतिक दल इस उत्तराधिकार से बचा हो। अब तक तो ‘राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट’ वाली हालत थी। अंत काल तक पछताने के लिए कोई नहीं रहा। लेकिन आज के अख़बार में जब यह ख़बर मैंने देखी तो दंग रह गया—‘‘सरकार चुनाव-बिल पास करके आगामी चुनाव में गांधीजी के नाम का उपयोग अनैतिक घोषित करने जा रही है।’’

उनके संदेश ने लोगों का नज़रिया एकदम बदल दिया

किसी महापुरुष के लिए तात्कालिक चापलूसी और लोगों द्वारा सस्ते उपहास दोनों का ही बहुत कम महत्त्व होता है और मैं जानता हूँ कि महात्माजी में यह महानता विद्यमान है।

चंद्रमा के अकेलेपन के साथ अँधेरे में

”कोई यह नहीं कहे कि मैं गांधी का अनुयायी हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं अपना कितना अपूर्ण अनुयायी हूँ।”

‘अपने मन का राज्य स्वराज है’

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी किताब ‘हिंद स्वराज’ में स्वराज के लिए सच्ची विकलता रखने वाले और उसके लिए संघर्ष करने वाले हिंदुस्तानी के कुछ लक्षण बताए थे/हैं। आज स्वतंत्रता दिवस की 74वीं वर्षगाँठ पर ‘हिन्दवी’ ब्लॉग की शुरुआत करते हुए हम इन्हें ‘स्वराज का सार’ के रूप में याद कर रहे हैं…

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