विपिन कुमार शर्मा

सुपरिचित कहानीकार और कवि।

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ तो हमेशा लाल रंग की कलम या हाईलाइटर साथ में रखता हूँ। जो भी कोई शब्द, पंक्ति या परिच्छेद महत्त्वपूर्ण लग जाए या पसंद आ जाए वहाँ बेरहमी से क़लम या हाईलाइटर चला देता हूँ—चाहे किताब कितनी भी महँगी और साफ़-सुथरी हो। हाँ, यह हरकत हमेशा केवल अपनी ही किताबों में करता हूँ। सफ़र तक के लिए भी जब किताब निकालता हूँ तो साथ में लाल क़लम या हाईलाइटर रखना नहीं भूलता। पढ़ते वक़्त कुछ बात मन में कौंधती है तो उसे भी उसी पृष्ठ के किनारे पर लिख डालता हूँ। ऐसा करते मैंने और भी लोगों को देखा है।

पढ़ने-लिखने के वे ज़माने

जहाँ से मुझे अपना बचपन याद आता है, लगभग चार-पाँच साल से, तब से एक बात बहुत शिद्दत से याद आती है कि मुझे पढ़ने का बहुत शौक़ हुआ करता था। कुछ समय तक जब गाँव की पाठशाला में पढ़ता था, पिताजी जब भी गाँव आते तो गीताप्रेस गोरखपुर की कुछ किताबें लिए आते थे, जैसे : ‘सच्चे और ईमानदार बालक’, ‘सत्यकाम जाबाल’, ‘चोखी कहानियाँ’ आदि।

क्या आपने कोई ऐसा इंसान देखा है?

कोरोना के क़हर के कारण कुछ अरसे से फ़ेसबुक पर वैसी पोस्टें देखने को नहीं मिल रहीं जो कुछ महीनों पहले रोज़ ही मिल जाती थीं। लगातार एक ही गुहार कि मेरे नाम से अगर कोई व्यक्ति पैसे माँगे तो उसे न दें, वह कोई फ़ेक अकाउंट होगा! जब भी ऐसे पोस्ट देखता, मन कचोट कर रह जाता… पता नहीं कौन होगा?

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