सौरभ पांडेय

नई पीढ़ी के कवि-लेखक।

रात का कौन-सा पहर है

शायद रात हो गई है और तुम वृद्ध। न तुम्हारे सिरहाने कोई प्रकाश करने वाला है, न ही कोई तुमसे बात करना चाहता है। बरसात के मौसम में साँप निकलते हैं… अगर कोई साँप तुम्हारे ऊपर चढ़ गया तो क्या करोगे? तुम तो मर ही गए हो, अब अगर साँप काट ले तो समझना कि शिव जी ने तुम्हें बुलाया है।

मुझे निरर्थकता की तीखी गंध आ रही है

वह अपने झूठ को सच बनाती थी, इस तरह कि उसका सच जंगली हो जाता था। वह जंगल कि जिसमें पेड़ नहीं थे, सिर्फ़ पीड़ाएँ थीं… जिसमें अनर्गल बातों के जैसी उग आती थी—हल्की पीली घास। फिर मैं बैठकर क्लोरोफ़िल की अधिकता पर बातें करता था। वह कहती थी, ‘मै अनपढ़ हूँ, यक़ीन करो। सत्य और समय मेरे दुश्मन है, और इस पीड़ा का कोई इलाज नहीं। मैं कितनी ही बार सच बोलते हुए चोटिल हुई हूँ, यह एक लंबे समय तक होता रहा है।’’

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