रात का कौन-सा पहर है

‘‘रात का कौन-सा पहर है? कौन-सा तारा डूबा है? क्या चंद्रमा त्रिकोण हो चुका है?’’

शायद रात हो गई है और तुम वृद्ध। न तुम्हारे सिरहाने कोई प्रकाश करने वाला है, न ही कोई तुमसे बात करना चाहता है। बरसात के मौसम में साँप निकलते हैं… अगर कोई साँप तुम्हारे ऊपर चढ़ गया तो क्या करोगे? तुम तो मर ही गए हो, अब अगर साँप काट ले तो समझना कि शिव जी ने तुम्हें बुलाया है।

शिव जी!

हाँ-हाँ उन्होंने ही। कितना जाप करते थे—महामृत्युंजय मंत्र का और अब देखो उसी का फल है कि तुम्हारी देह से मृत्यु नदारद है। कितने मँझले रह गए तुम दोनों भाइयों के बीच—उन दोनों की ऊँचाइयों के बीच। अम्मा को पड़ गई थी तुम्हारी देह, लेकिन उनके जैसी मृत्यु नहीं मिल रही तुम्हें। हाँ याद है न, तुम्हारी गोद में आकर लेटी थीं। तुमने अम्मा-अम्मा पुकारा और जवाब ढूँढ़ने वह तुम्हें छोड़कर चली गईं। सोचो तुम्हारी अम्मा बहुत पहले ही तुम्हें छोड़कर किसी दूसरे आदमी के साथ भाग गई होतीं तो? तुम अपने पिता की कल्पना क्यों नहीं करते?

कितना एकांत है तुम्हारे पास!

तुम ज़िंदगी भर तीर्थ जाने के विषय में सोचते रहे। भगवान को पाने की कोशिश में रहे और वह पहाड़ों में एकांत पाकर समाधि लेकर बैठा हुआ है, जैसे आज तुम लेटे हो इस मैले गद्दे पर—जिस पर तुम्हारे पेशाब की तीखी गंध वाली चद्दर पड़ी है या कि तुमने फिर से कर दिया?

हाय राम! कितने घटिया आदमी हो।

सोचो ईश्वर भी तुम्हारी तरह असहाय हो। तुम्हारी तरह उन मंदिरों में ठूँठ लेटा हो। अपनी अमरता पर ख़ुद को कोस रहा हो। अपने पेशाब की तीखी गंध से परेशान, मर जाना चाहता हो; तब? हाँ, बिल्कुल तुम्हारी तरह—जैसे तुम सोचते थे आत्महत्या के लिए। क्या तुम्हें नहीं लगता कि ईश्वर ने भी आत्महत्या की कोशिश की होगी? ख़ैर, तुम दार्शनिकों की तरह सोचो तो पाओगे कि ईश्वर ने ये दुनिया मृत्यु की क्षुधा से त्रस्त होकर ही बनाई है। इसीलिए ये दुनिया नश्वर है और सबको मृत्यु मिलनी तय है। चाहे कोई ईश्वर में विश्वास करता हो या न करता हो।

तुम्हारी चद्दर से बहुत तेज़ पेशाब की गंध आ रही है। तुम किसी को बुला पाओगे, जो आकर तुम्हारी चद्दर बदल दे?

तुम्हारी पत्नी जो रोज़ तुमसे लड़ती थी और आए-गए तुम भी उसे पीटने लगते थे… वह भी तो मर गई। उसके मरने पर जैसे तुम्हारे हाथ जड़ हुए हैं, देखकर लगता है कि वह तुम्हारे हाथों की सारी ऊर्जा सोखकर मरी है। इसका मतलब कि तुमने अपने हाथों से उसे मारा है, भले ही तुम्हारे ऊपर उसके क़त्ल का इल्ज़ाम न लगे। एक तरह से मरना उसका सौभाग्य था। बिना किसी सुख के सिर्फ़ पाँच बच्चे पैदा किए थे उसने। वह कभी तुमसे मार खाती, तो कभी अपने ही बच्चों से गालियाँ और घूँसे खाती। इसके अतिरिक्त उसके जीवन में था ही क्या? यह तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम अपने बच्चों से अभी तक पिटे नहीं हो। कितने निर्लज्ज हो तुम!

देखो तुम कैसे बरामदे मे एक लकड़ी के तख़्त पर पड़े हुए हो। तख़्त जिसे तुम ही ख़रीदकर लाए थे। जिसके हर पाए पर दीमकों की बसी-बसाई दुनिया है। तुम्हारे मरने के बाद इनका दुख कौन समझेगा। तुम्हारी पोती ने एक पाए पर आलते से तुम्हारा नाम लिखा है। आलते का लाल रंग तुमने शायद देखा हो। ऐसा लग रहा है कि कोई उसे पढ़े तो बड़ी सतर्कता से तुम्हारे बिस्तर से बचते हुए निकल जाए। सही भी है, कोई क्यों किसी की मलिनता से ख़ुद का मन ख़राब करे। अगर तुम होते तो शायद किसी को ऐसे लेटने भी न देते। फेंक आते उसे कहीं या खदेड़ देते घर से बाहर। तुम्हें सफ़ाई जो पसंद थी।

सोचो तुम्हारे बच्चे कितने उदार हैं। सिर्फ़ गालियाँ देकर ही छोड़ देते हैं तुम्हें। उनकी गालियाँ तो तुम सह ही सकते हो, आख़िर सिखाई भी तो तुमने ही। हाँ और क्या? तुमने कभी उनसे बिना गाली के बात की?

तुम पूजा करते रहते थे और अगर कोई उधर से गुज़र जाए, तो माँ-बहन की गलियों से उसका कान फाड़ देते थे। यह अच्छा था कि उनकी कोई बहन नहीं थी, वरना वह गूँगी हो जाती। सोचो तुमने अपनी बहुओं का चेहरा नहीं देखा। कितने कमज़ोर थे तुम और अब मलिन हो।

तुम्हारे नृशंस भूत और लाचार वर्तमान के बाद तुम्हारे भविष्य की कल्पना कितनी हास्यास्पद है। तुम अपने भविष्य की कल्पना कर सकते हो, लेकिन उसकी व्यापकता तुम्हारे स्पंदनों से भी कम है। तुम क्या सोचोगे? मैं तुम्हारे शब्दों में कहता, लेकिन मुझे तुम्हारे शब्द बहुत निरर्थक लगते हैं।

तुम सोच सकते हो कि मरने के बाद तुम्हारी देह से धोती और बनियान कौन उतारेगा, जिसके हल्के छिद्र से तुम्हारी जर्जरता रूपवती होती रही है। तुम्हें इस बात से डरना चहिए कि अगर तुम निर्वस्त्र हुए तो सारा समाज तुम्हारे सूजे हुए अंडकोष का मज़ाक़ उड़ाएगा, जैसे तुम उड़ाते थे—किसी की लंगोट का तो किसी की तोंद का। सोचो जब तुम मर जाओगे तो तुम्हें कफ़न में लपेट दिया जाएगा और तुम्हारी चौड़ी नाक में इत्र में डूबी हुई रूई भर दी जाएगी। तुम्हारी अँगूठी, बिस्तर, छाता सब किसी ब्राह्मण को दान में दे दिया जाएगा।

तुम्हारे तीनों लड़के तुम्हारी देह को लिए फ़ौरन बनारस रवाना होंगे। मोलभाव करने के बाद मणिकर्णिका पर तुम्हारी चिता सजेगी। तुम्हारी देह को गंगा में नहलाकर उस पर घी लगाया जाएगा। तुम्हारा बड़ा बेटा करुणा से भरा हुआ—तुम्हारी चिता को आग लगाएगा और फिर उसे मुड़कर नहीं देखेगा। तुम्हारे बाक़ी दोनों लड़के बिलखेंगे। तुम अग्नि के हवाले होगे। तुम्हारी देह धीमे-धीमे सिमटती जाएगी। तुम्हारे सूजे हुए अंडकोष और मेंढक जैसी उभरी हुई आँखें सबसे पहले आग पकड़ेंगी। तुम्हारे चेहरे पर फैली हुई आग तुम्हारी नाक पर फैले हुए ग़ुस्से को पिघलाकर उसे भद्दा बना देगी। तुम्हारे बड़े-बड़े कान टप-टप पिघलकर गिरेंगे।

यह ही शायद तुम्हारे स्वर्णिम भविष्य की कल्पना हो सकती है। इससे बेहतर कल्पना शायद संभव ही नहीं है। तुम जब तक जीवित हो, तब तक इसी कल्पना में हर पल कुछ सुधार कर सकते हो, जैसे : घी की शुद्धता क्या होगी? किस गाड़ी में तुम्हें भरकर ले जाया जाएगा? कौन-सी लकड़ी इस्तेमाल होगी? कर्मकांड वाले पुरोहित की विद्वता का स्तर क्या होगा?

तुम्हारे लिए सबसे ज़्यादा रोचक कल्पना यह हो सकती है कि तुम्हारे मरने पर रोने वाले कितने लोग होंगे? गिनती तो तुम्हें अच्छे से आती है, मास्टर जो ठहरे। मुझे पक्का यक़ीन है कि तुम ऐसी किसी भी कल्पना पर विश्वास कर सकते हो, लेकिन संभव यह भी है कि सोचो तुम्हारी आधी जली हुई चिता पर बरसात होने लगे और तुम्हारी सिर्फ़ आधी देह ही जली हो; तो यह दृश्य कितना भयावह होगा। अगर किसी ने तुम्हें आधा जला हुआ देख लिया, तो शायद वह ख़ुद गंगा में कूदकर अपनी जान दे देगा।

रात ज़्यादा हो गई है। तुम्हारी देह-दुर्गंध बढ़ रही है। तुम्हें नींद आ रही होगी। सो जाओ।

सुबह हो गई है। सूर्य तुमसे अर्घ्य न पाकर और गर्म हो गया है। तुम्हारी पोती आई थी। तुम्हें देखा, मुँह सिकोड़ा और दौड़कर भाग गई। तुम्हारे बड़े बेटे ने तुम्हें उठाकर बैठा दिया है। तुम उससे तंबाकू माँगोगे तो वह तुम्हें झिड़क देगा। उसके पास होगा, लेकिन वह तुम्हें देगा नहीं। वह तुम्हें गाली देते हुए बोलेगा : ‘‘खा के यहीं हग दोगे तुम, अब तो मान जाओ। जाने तुम्हें मौत कब आएगी। जीवन नरक करके रख दिए हो, ऐसा लग रहा है कि साला तुम्हारा हगा हुआ ही साफ़ करने के लिए पैदा हुआ हूँ। माफ़ कर दो अब। शर्म करो और मर जाओ। हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे!’’

यह सब कुछ सुनकर भी तुम रो नहीं पाओगे, तुम भीतर ही कहीं विलोपित हो जाना चाहोगे; लेकिन तुम्हारे आँसू नहीं निकलेंगे।

तुम्हारे बिस्तर के नीचे क़ब्ज़ की दवा रखी हुई है, जिसे खाने का वक़्त हो गया है। अभी तुम्हारा मर जाने मन कर रहा हो, तो पूरे डिब्बे की दवा एक साथ घोंट लो। कृपा हुई तो तुम्हारे भीतर के अंग भी भीतर ही गल जाएँगे। शौच के रास्ते ख़ून आएगा और तुम मर जाओगे।

क्या तुम्हें सच में ख़राब नहीं लगता कि साँस की गंदी आवाज़ के साथ श्वासनली में भरे बलग़म को एक बार में ही अपने मुँह में भरते हो और पूरा थूकने की कोशिश में ज़ोर लगाते हो, लेकिन हाथ सिर्फ़ असफलता ही लगती है! थोड़ा बलग़म तुम्हारे बनियान पर गिर जाता है, थोड़ा-सा तुम्हारे होंठों से पतला तार बनाते हुए उसके आख़िरी सिरे पर गोल गठरी-सा लटक जाता है; जो तुम्हारे ही घुटने पर गिरता है। कुछ हिस्सा निश्चित रूप से दूर भी जाता है, लेकिन तुम्हारे दिमाग़ ने निशाना लगाने की कला को खो दिया है, जिस वजह से बाक़ी का बलग़म बरामदे के फ़र्श पर कहीं भी गिर जाता है; जो अंत में तुम्हारी पोती के पंजों में चिपक कर पूरे घर में फैल जाता है।

आख़िरी बार कब दौड़े थे? क्या तुम्हारा कभी मन नहीं करता कि इस जर्जरता को तोड़कर एक रोज़ बिना जूता-चप्पल पहने ही दौड़ने लगो तुम? भले ही कुछ मीटर में ही साँस उखड़ जाए तुम्हारी और तुम दम तोड़ दो, लेकिन कम से कम एक जीवित मृत्यु तो मिलेगी तुम्हें। क्या तुमने कभी भी अपनी देह पर रंगीन वस्त्र डाला है? मुझे तो नहीं लगता! कितना सफ़ेद रहा है तुम्हारा जीवन! यह अब लिजलिजा भी हो गया है। मानो तुम्हारा पूरा जीवन स्वप्नदोष के कारण बिखरे हुए वीर्य की तरह था। यह अब धीरे-धीरे सूखने लगा है और एक भद्दे दाग़ की तरह तुम्हारे अपनों को ही लज्जित कर रहा है।

क्या तुम्हें अपने परिवार के हर सदस्य का नाम याद है? जन्मतिथि तो कोई पूछेगा भी नहीं।

क्या याद है कि छोटे लड़के और मँझले लड़के के बीच दो लड़कियाँ भी हुई थीं तुम्हें, जिन्हें सुअर गढ़ई के बग़ल में गाड़ दिया था तुमने। पहली बच्ची के समय तो तुम्हारा बड़ा लड़का ज़िद पर आ गया था और तुम्हारी पत्नी सिर्फ़ उसी की ज़िद का हवाला देकर तुम्हें रोक रही थी। वह सीधे-सीधे तुम्हें मना भी नहीं कर पा रही थी।

‘‘इससे खेलेगा तो हमें बहुत महँगा पड़ेगा।’’

यही वाक्य था शायद, जो तुमने अपनी पत्नी से बोला था। बिना किसी कपड़े में उसकी मुलायम देह ठंड से काँप रही थी। जिसकी नाभि से छोटी-सी गर्भनाल लटक रही थी। उसकी चीख़ती हुई आवाज़ को दबाते हुए तुम उसकी चीख़ की भाप से अपनी हथेलियों से कन्या सुख की रेखा को मिटा रहे थे।

उसे ज़मीन में गाड़ते हुए तुम अपने साथ नमक के ढेले लेकर गए थे। उसे ज़मीन में डालने से पहले तुमने आख़िरी बार उसके जननांगों को बड़े ग़ौर से देखा था—इस लालच में कि किसी भी तरह उसकी देह में एक बालक का प्रतिबिंब नज़र आ जाए। लेकिन सत्य उसकी योनि थी और दैत्य तुम्हारा व्यवहार।

आह हिरण्यकश्यप! क्या कोई ईश्वर नहीं था जो तुम्हें रोक सके? धरती ने ही क्यों नहीं उगल दिया उसकी देह को?

दूसरी लड़की के समय तो तुम्हारा बड़ा लड़का ही नमक की थैली पकड़कर ले गया था। बिना किसी बातचीत और रोआ-रोहट के तुमने उसे भी गढ़ही के किनारे गाड़ दिया था। तुमने गाड़ते हुए इस बात का ध्यान रखा था कि दोनों ज़मीन के नीचे भी आपस में एक दूसरे से न मिल पाएँ। लेकिन इस बेटी के साथ तुमने यह काम अच्छा किया था कि उसके जननांगों के निरीक्षण से बचे थे। तुमने बस एक महीन धोती में लपेटकर उसे ज़मीन में दफ़्न कर दिया था।

बरसात की वजह से मिट्टी खोदने और दबाने में तुम्हें ज़्यादा दिक़्क़त भी नहीं हुई थी। याद है न तुम फिसलकर गिरे भी थे? तुम्हारे माथे पर का निशान तभी का है।

कठफोड़वा तुम्हारे पैरों के पास आकर बैठा है। वह तुम्हारे ज़मीन छूते सूखे भूरे पंजे को लकड़ी का कोई ख़राब टुकड़ा समझकर उसमें से कीड़े नोचने आया होगा। लेकिन तुम्हारी देह पर पसरी हुई मृत्यु-गंध ने उसे आभास कराया होगा कि तुम मनुष्य हो और मृत्यु-कगार पर हो।

सोचो तुम्हारी जाति का रूपक कोई वेश्या होती, तो क्या तब भी तुम उसे अपने अभिमान का हिस्सा बना पाते?

तुमने तर्क का तिरस्कार किया और प्रपंच के महाप्राण बने रहे। तुम्हारे स्वप्न आजीवन अव्यक्त रहें।

मृत्यु!

‘‘रात का कौन-सा पहर है? कौन-सा तारा डूबा है? क्या चंद्रमा त्रिकोण हो चुका है? क्या सूर्य संशय का शिकार हो गया है? क्या सारे ग्रहों पर मनुष्य की निर्बलता हावी हो गई है? यह कौन-सा पहर है? यह कौन-सा पहर है? मेरे शरीर पर वस्त्र हैं या नहीं? कोई मुझे बताएगा?

शरीर के सारे रोएँ क्यों टूट रहे हैं? क्या इसे ही पीड़ा कहते हैं? कौन है? ये कौन दौड़ रहा है—मेरी छाती पर। मेरी जीभ टेढ़ी हो गई है। मै चीख़ रहा हूँ। क्या कोई मुझे सुन पा रहा है?”

आह मृत्यु!