हमारी इच्छाएँ हमारा परिचय हैं

यह सोचकर कितना सुकून मिलता है कि जिसे हम अपनी अस्ल ज़िंदगी में नहीं पा सके उसे एक दिन भाषा में पा लेंगे या भाषा में जी लेंगे या उसे एक दिन भाषा में जीने का मौक़ा ज़रूर मिलेगा। मुझे लगता है कि भाषा एक तरह से अंतिम विकल्प है। अंतिम समाधान। अंतिम शरणस्थल। भाषा एक तिजोरी है, जहाँ हम अपनी तमाम इच्छाओं, सपनों और कामनाओं को सुरक्षित रख सकते हैं।