अविनाश

नई पीढ़ी के कवि-लेखक और अनुवादक।

बिखरने के ठीक पहले

अकेले रहने की आदत किसी नशे की तरह है। आस-पास लोग होते हैं तो अपना स्व छिलके की तरह उघड़ जाता है। फ़िट न हो पाने की कशिश आत्मा को बीमार करती है।

दुःख की नई भाषा

दुःख के अथाह सागर में डूबा हुआ हूँ। जब भी पीड़ा में होता हूँ, अपनी व्यथा को व्यक्त करने के लिए नए बिंब तलाशने की बजाय परिचित भाषा में कहता हूँ। अभी मैं इस उद्देश्य से लिख रहा हूँ कि मुझे दुखों की अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा प्राप्त हो और दूसरा कि मैं अपने दुःख को जान सकूँ।

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