‘चलो अब शुरू करते हैं यह सांस्कृतिक कार्यक्रम’
हिंदी में कविता-पाठ के बारे में कभी विचार नहीं किया जाता। हमारा कविता-पाठ अक्सर बल्कि अधिकतर इतना नीरस, उबाऊ और अनाकर्षक क्यों होता है? दिनोदिन उसका श्रोता समाज कम हो रहा है।
By राजेश जोशी
मार्च 21, 2021