प्रभात

सुपरिचित कवि-लेखक। ‘अपनों में नहीं रह पाने का गीत’ और 'जीवन के दिन' शीर्षक से कविताओं की दो पुस्तकें प्रकाशित और चर्चित।

जीवन का पैसेंजर सफ़र

यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।

रहिमन दाबे ना दबैं जानत सकल जहान

रहीम की कविता समय की कलादीर्घा में लगी हुई एक अद्भुत कला-प्रदर्शनी है। उनकी कविता में चार सौ साल पुराने भारतीय जीवन के क्लैसिक चित्र मिलते हैं। वे चित्र कलात्मक ढंग से जीवन की मर्मस्पर्शी सच्चाइयों का बयान करते हैं।

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