शायक आलोक

हिंदी की नई पीढ़ी के सुपरिचित कवि-गद्यकार।

लिखने के बारे में

मध्यमवर्गीय आदमी की कविता और मासिक बिल में हमेशा एक अतिरिक्त उभर आता है या छूट जाता है। कवि का एक संसार होता है, आदमी का दूसरा।

विलग उपस्थिति का ‘कभी-कभार’

एक ‘कभी-कभार-सा’ लिखने के मध्य में ही ‘अनुकरण की अधीरता’ पर उनके पाठ का अपना एक तात्पर्य क्यों न तलाश लिया जाए। हम कवि, नागरिक और मनुष्य के कर्तव्य बरतने की कुछ साझा पूर्व-शर्तें अपनी पीठों पर लादे रखें तो ‘कुछ खोजते हुए’ अचानक एक दिन एक किसी जगह पर क्यों नहीं मिल पड़ेंगे?

गढ़ंत एक सुंदर शब्द है!

पहले मैं जिस आशय के अनुरचना-से कार्य को ‘पढ़ते-पढ़ते’ के किसी खाँचे में रखना चाहता था, उसे ‘पढ़ते-गढ़ते’ के खाँचे में रखा। यह मैंने ज्ञानेंद्रपति से लिया।

नए साल के नए संकल्प

पिछले वर्ष नव वर्ष की पूर्वसंध्या पर पता नहीं किस मनःस्थिति में मैंने याद किया सुजान सौन्टैग को और कह दिया उनके हवाले से कि इस वर्ष संकल्प नहीं, प्रार्थनाएँ—करुणा, कृपा, नवाज़िश।

कविता का स्वप्न और स्वप्न में कविता

कवि के ज़ेहन में सवाल उठ सकता है कि किस कवि का स्वप्न? वेल, इट डिपेंड्स! इतनी धाराएँ हैं, कविता के इतने आंदोलन हुए।

मंगलेशियत का पुनर्पाठ

वह अनंत यात्रा पर निकल गए हैं। यह अचानक हुआ है। हिंदी ने और कविता ने अभी उन्हें विदा करने की तैयारी नहीं कर रखी थी। अभी मृत्यु पर इधर-उधर की संस्कृतियों के कुछ फ़लसफ़े पढ़ हमारे मनों को मज़बूत किया जाना शेष था।

रोज़-रोज़ मुक्तिबोध

उस कमरे में उस रात गहरी चली खोज में ताखे से झाँकती दिख पड़ती है एक बीड़ी और मैं साथी को आवाज़ लगाता हूँ कि आ गए हैं मुक्तिबोध। हम स्तुति-पाठ करते हैं—‘हम घुटने पर नशा-देवता (मुक्तिबोध ने नाश-देवता लिखा है) बैठ तुझे करते हैं वंदन—तेरे अग्निकणों से जीवन…’

एक बड़ा फ़ुटबॉलर नहीं रहा

यह हमारे एक हिस्से का माराडोना है। ये क़िस्से हमारे एक हिस्से के माराडोना की श्रद्धांजलि के इस्तेमाल के लिए हैं।

बिल्लियों के नौ जीवन पाप से भरे हैं

लोक जब कुत्तों, गायों और घोड़ों को पालतू बना रहा था; तब बिल्लियाँ मनुष्य को पालतू बना रही थीं। कैट्स डोमेस्टिकेटेड ह्यूमन!

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