मैं नायकविहीन दुनिया में रहने का स्वप्न देखता हूँ

मैं कभी हीरो नहीं होना चाहता था। मैंने कभी कोई स्वप्न ऐसा नहीं देखा जिसमें मैं छिनी उँगली पर गोवर्धन उठाए खड़ा हूँ और लोग उसकी छाया में मेरी प्रशस्ति में गीत गा रहे हैं। सख़्त चेहरों और रोबीली आँखों से मुझे सदैव विकर्षण ही रहा। रोने इच्छा होने पर मैंने बस रोना चाहा है। यह बात अलग है कि मेरा चाहा कम ही पूरा हुआ। खुलकर रोने की इच्छा अभी इतनी नहीं खुली कि मैं खुलकर रो सकूँ।