मेरा संपूर्ण जीवन इच्छा का मात्र एक क्षण है

जीवन निर्णय नहीं निरंतर भय है।

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ज्ञान अपनी संपूर्णता में प्रकृतिगत छल है… संबल है—हम सबका एक मात्र अज्ञान।

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राजनीति बुरी बात नहीं है। बुरी बात है—राजनीति की कविता।

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स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।

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कवियों का स्थान निर्धारण या मूल्यांकन मैंने कभी नहीं किया। कभी कर पाऊँगा भी नहीं, क्योंकि ‘सफल’, ‘समर्थ’ अथवा ‘महान’ होने को मैं कोई महत्त्व नहीं देता। मैं महत्त्व देता हूँ—‘प्रिय’ होने को। और ज़रूरी नहीं है कि जो कवि मुझे प्रिय हो, वही कवि आपको भी प्रिय हो। मुझे तो निश्चय ही राजकमल चौधरी सबसे अधिक प्रिय कवि हैं। निराला के बाद इतना प्रिय कवि राजकमल चौधरी के लिए दूसरा हिंदी में नहीं हुआ, अब होगा भी नहीं।

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मैं स्वयं को असफल मनुष्य, असफल कवि, असफल पशु, असफल देवता और असफल ब्रह्मराक्षस मानता हूँ। सफल होना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिए केवल संभव है—होना।

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प्रकृति, आदर्श, जीवन-मूल्य, परंपरा, संस्कार, चमत्कार—इत्यादि से मुझे कोई मोह नहीं है।

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मेरी कविता की इच्छा और मेरी कविता की शब्दावली, मेरी अपनी इच्छा और मेरी अपनी शब्दावली है।

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शून्य में भी कविता अपने शरीरी और अशरीरी व्यक्तित्व का स्थापन और प्रसार करती है।

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वर्तमान ही मेरे शरीर का एकमात्र प्रवेश-द्वार है।

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मैं सवाल-जवाब करता रहता हूँ, जब तक नींद नहीं आ जाए।

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मुक्ति-प्रयास ही कविता का धर्म है।

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कविता के रंग चित्रकला के प्रकृति-रंग नहीं होते।

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कविता का संगीत शब्द-ध्वनि का संगीत नहीं है, अर्थ-संकेत (इसे रीतिकालीन ‘अर्थ-संकेत’ के अर्थ में ग्रहण नहीं किया जाए) और अर्थ-विस्तार का संगीत है।

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आसक्तियाँ और रोग—ये दोनों वस्तुएँ आदमी को पराक्रमी और स्वाधीन करती हैं।

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कविता-भंगिमाओं से मुक्ति का प्रयास ही कविता है, सुर्रियलिस्टों की यह बात मुझे स्वीकार न हो, पसंद ज़रूर आई है।

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‘तत्काल’ के सिवा और कोई काल चिंतनीय नहीं है।

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राजनीति किसी भी ‘मूल्य’ और किसी भी ‘संस्कार’ पर विश्वास नहीं करती है।

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हम नफ़रत करते हुए भी, प्यार करते हैं। हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं। कविता हमारे लिए भावनाओं का मायाजाल नहीं है। जिनके लिए कविता ऐसी थी, वे लोग बीत चुके हैं।

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लेखक—जो कोई भी सही अर्थ में आधुनिक है और बुद्धिजीवी है, उसे अपने जीवन और अपने समाज के हर मोर्चे पर पूरी सचाई, पूरी ईमानदारी के साथ पक्षधर होकर, क्रांतिकारी होकर, अपने वर्ग, अपने समूह, अपने जुलूस का मुखपात्र, प्रवक्ता होकर सामने आना होगा—उसे आख़िरी क़तार में सिर झुकाए हुए खड़े रहना नहीं होगा।

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दोहरी ज़िंदगी की सुविधाओं से मुझे प्रेम नहीं है।

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मैं कोई मतदान नहीं करूँगा। कर नहीं चुकाऊँगा। किसी पंक्ति में खड़े होकर क्यू नहीं बनाऊँगा। कोई उपाधि, सम्मान, लाइसेंस, बीमा, पासपोर्ट, परमिट, पद या पोर्टफ़ोलियों नहीं लूँगा। मैं सामाजिक सुरक्षा नहीं चाहता। बहीखाते ढोने और औरों के लिए कंधे पर बंदूक़ें ढोने और गोली चलाने के बजाय मैं जंगलों और गुफाओं में चला जाऊँगा…।

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परिश्रम और प्रतिभा आप-ही-आप आदमी को अकेला बना देती है। उसे दूसरों का साथ करने का अवकाश नहीं देती। इतना समय भी नहीं कि वह दूसरों के आलस्य, आराम, शौक़, भावुकताओं का हिस्सेदार बन सके। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने, और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाज़त नहीं देती।

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आत्महत्या को मैं मुक्ति की प्रार्थना कहता हूँ, अपराध या पलायन नहीं मानता।

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मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।

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मनुष्य होना मेरी नियति थी, और लेखक मैं स्वेच्छा से, अर्जित प्रतिभा और अर्जित संस्कारों से हुआ हूँ।

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शरीर के महत्त्व को, अपने देश के महत्त्व को समझने के लिए बीमार होना बेहद ज़रूरी बात है।

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मेरे लेखक के लिए सबसे बुरी बात यह रही कि अपने समकालीन अधिकांश लेखकों से अर्थात् उनकी निजी ज़िंदगी से मेरा व्यक्तिगत संपर्क रहा है।

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व्यवस्था नहीं है। व्यवस्था किसी दिन भी नहीं थी।

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अव्यवस्था का यथार्थ ही नहीं, व्यवस्था की कल्पना भी अपने आपमें अव्यवस्था ही है।

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सोचते रहो। उदास रहो और बीमार बने रहो।

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यश-प्रतिष्ठा और रचना का मूल्य अच्छा लिखने से नहीं, यश और मूल्य देने वाले लोगों की इच्छा के अनुसार लिखने से मिलता है।

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जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।

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मेरा संपूर्ण जीवन इच्छा का मात्र एक क्षण है।

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मैं अगर राजकमल चौधरी बनता जा रहा हूँ
वर्तमान में
अतीत से ज़्यादा इसका अर्थ
केवल इतना और केवल इतना ही है कि मैं
क्रमश: सिलसिले से
समझने लगा हूँ कि आदमी होने का
अर्थ क्या होता है।

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एक दिन ‘स्टेट्समैन’ या ‘टाइम्स’ के संवाददाता से सब-एडिटर पूछेगा :

— क्या राजकमल बड़ा लेखक था?
— क्यों?
— वह मर गया।
— तो?
— ओबिटुरी में दिया जाए?
— इतना बड़ा लेखक नहीं था।

They will decide that he should be given one line—
राजकमल चौधरी, हिंदी राइटर, Born 13. 12. 1929 – Died…

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यहाँ प्रस्तुत उद्धरण ‘राजकमल चौधरी रचनावली’ (संपादक : देवशंकर नवीन, राजकमल प्रकाशन, संस्करण : 2015) से चुने गए हैं। राजकमल चौधरी की प्रतिनिधि और प्रसिद्ध कविताएँ यहाँ पढ़ें : राजकमल चौधरी का रचना-संसार