गढ़ंत एक सुंदर शब्द है!

कहो।

मैं क्या कहूँगा! पेंटिंग भारी आर्ट है, कविता और फ़ोटोग्राफी हल्के फ़ॉर्म्स।

कहने की ज़्यादती के बिना कहो। लाइक अ स्पेक्टेटर। व्हाट यू सी?

वेल, यह फ़ोटोग्राफिक है। कवितामय। मेरा आशय है कि यह नायिका फ़ोटोग्राफी के लिए भी यों ही बैठती। शीज़ पोज़िंग फ़ॉर द पेंटर। उसके एक बाज़ू को वैसे मोड़ा गया है कि कंधा और उसके नीचे का वह हिस्सा दिखे। देह एक अद्भुत दशा क्रिएट करती है। तुम इसके कंधे व टाँगों को ढक दो तो एक जादू ग़ायब हो जाएगा, शायद दूसरा जादू उपस्थित हो। जो नहीं है उसके जादू पर कहना ‘पोएटिक एक्स्प्रेशन’ है। इस पद का प्रयोग प्रायः मैं नकारात्मक आशय में ही करता हूँ।

अर्थात् तुम्हें कुछ ख़ास नहीं लगी यह पेंटिंग? देह से लुभाया गया है? कवि-चातुर्य की तरह पेंटर-चातुर्य-सा कोई मनगढ़ंत शब्द रखना चाहते हो?

गढ़ंत एक सुंदर शब्द है! पहले मैं जिस आशय के अनुरचना-से कार्य को ‘पढ़ते-पढ़ते’ के किसी खाँचे में रखना चाहता था, उसे ‘पढ़ते-गढ़ते’ के खाँचे में रखा। यह मैंने ज्ञानेंद्रपति से लिया। …नहीं। ऐसा भी नहीं है। क्रीड़ा अकविता का प्राप्य अधिक है। मेरा आशय है कि यह एक परफ़ेक्ट मॉडल की परफ़ेक्ट पोज़ है। पेंटर ने बढ़िया फ़्रेम चुना है। उसने इस फ़्रेम में सभी ज़रूरी प्रॉप्स रखे हैं।

प्रॉप्स?

मुझे नहीं पता और क्या शब्द रखूँ। यह शब्द मैंने बेगूसराय में पहली बार सुना था। बेगूसराय का रंगमंच समृद्ध है। नाटक भी भारी आर्ट है। प्रॉप्स प्रॉपर्टीज़ का शब्द-संक्षेप है। प्रॉपर्टीज़ कैसा संपत्ति-शक्ति-सत्तासूचक शब्द है। आई मीन ये सब चीज़ें मैंने किसी भी ऐसी प्रसिद्ध पेंटिंग में देख रखी। नायिका, उसका चमकता शरीर, उसकी लुभाती मुद्रा, कपड़े की सलवटें और दूसरी डिटेलिंग्स। फ़र्नीचर्स वग़ैरह। कभी वे नायिका के हाथ में फ़्लास्क रख देते हैं। जैसे यहाँ यह अंगीठी रखी गई है जानबूझकर। वह जो पीछे खिड़की दिख रही और उसका दृश्य, मुझे लगता है मैंने ऐसा पहले भी देख रखा। वे पेंटिंग में कमरे की दीवार पर एक पेंटिंग लगा देते हैं या एक खिड़की खोल उसमें कुछ अलग डिटेल्स भर देते हैं। शायद इसलिए कि आप कमरे तक ही न रहें, दूर भी जाएँ। विषय-विस्तार। जैसे विनोद कुमार शुक्ल कविता में करते हैं। पड़ोस के डिटेल्स के साथ घर। घर फिर बस घर भर नहीं है। घर भर में पड़ोस घुस आता है। पड़ोस तक घर फ़ैल जाता है।

और?

नायिका की आँखें प्रभु जोशी जैसी हैं। मुझे प्रभु जोशी के चित्र पसंद रहे। मैंने एक बार प्रभु जोशी की डिटेलिंग्स के साथ हफ़्ता गुज़ार दिया था। मेरे और प्रभु जोशी के बीच अमृता शेरगिल हैं। अमृता (शेरगिल) ने मुझे एक ख़त लिखा था, जैसे अमृता (शबाना आज़मी) ने फ़ारुख़ शेख़ को ख़त लिखे थे, जैसे ख़त अमृता (प्रीतम) उन लोगों को लिखना चाहती थीं जिनसे वह कभी नहीं मिलीं, जो कविता और कला के मृतक-पूर्वज थे। जैसे ख़त अमृता (सिंह) ने सारा अली को सौंप शायद कह दिया हो कि ये पाठ के लिए नहीं, सबक़ के लिए हैं।

मैंने कहीं पढ़ा था कि यह एक टेक्निक है कि तुम किसी कोने में भी खड़े होकर देखो, आँखें तुम्हें ही देख रही। फ़ोटोग्राफी के सपाट में इसे लेंस में देखना कहते हैं। कविता-संदर्भ में कहूँ तो जैसे कविताओं के सब विषय एक प्रतिबद्धता को प्रस्तावित।

प्रभु जोशी कौन?

नो बडी।

यह पेंटर की एक सुंदर शाम रही होगी!

ऐसा कह नहीं सकते। मेरे कमरे को देखो तो यहाँ चौबीस घंटे रात रहती है। रोशनी के सामने बिठा दो नायिका को और उसकी देह रुनझुना उठेगी। रोशनी अगर इस तरफ़ है तेज़ तो खिड़की के बाहर का दृश्य धुँधला दिखेगा दिन में भी।

तुम्हारा तात्पर्य सुंदर नायिका संग सुंदर शाम से है तो यह कल्पना का विषय है। संभव है यह एक पेशेवर वेश्या हो। पेशे में पगी हुई। हो सकता है यह प्रेम में पगी नायिका हो जो पेंटर के हुनर का शिकार हुई या अपने हुनर से शिकार बनी। पिकासो के कितने क़िस्से हैं। एक क़िस्से में तो हेमिंग्वे की गर्लफ़्रेंड को पिकासो किलिमंजारो ले गया था। रुको, शायद इसका उल्टा हुआ था। मेरी स्मृति कितने विलोम ख़ुद दर्ज करती रहती है। विलोम मुझे कितना पसंद रहा है। मैंने एक गमले को पलट के रख दिया और उसके ऊपर एक मृत पौधा रख दिया। यह सजीव पौधे को सुलट गमले में देखने की आम प्रतीति का विलोम था, इसलिए ही इसे मैंने कला भी कहा। मैं कभी स्मृति-लुप्तता का पुरज़ोर शिकार होने लगूँगा तो पहले अपने बाल जिम कैरी वाली फ़िल्म की केट विंसलेट सा नीला कर लूँगा। चेहरे से, आँखों से, पोज़ से, कपड़ों से संबंधों या दृश्य के निर्धारण को ‘आलोचना-कर्म’ ही माना जा सकता है, वास्तविक स्थिति नहीं, संभव है यह रचना को छू-भर-कर गुज़र गई हो। मैंने देखा ‘अमेरिका गॉट टैलेंट’ में भाई-बहनों के कई जोड़े आए और एक-एक फ़्रेम में वे आकंठ डूबे प्रेमी-प्रेमिकाओं से दिख पड़े।

अंतिम कुछ?

बढ़िया आकर्षक पेंटिंग है। संभव है यह किसी बड़े पेंटर की फ़ेमस पेंटिंग हो। आर्ट-आलोचक इसे अलग तरीक़े से देखते होंगे। मैंने एक दिन यूरोप के एक युवा आर्ट-आलोचक को कहते सुना कि काश मोनालिसा का सर नहीं होता तो वह पीछे के अदर डिटेल्स को और बख़ूबी देख पाता। कल्पना करो—मोनालिसा से महत्त्वपूर्ण मोनालिसा के सर के पीछे का दृश्य!

यूलियो रोमेरो दे टोरेस की चित्र-कृति ‘ला चिकिता पिकॉनेरा’

यह यूलियो रोमेरो दे टोरेस की ‘ला चिकिता पिकॉनेरा’ है।

बढ़िया। इस परिचय से पेंटिंग तो नहीं बदलेगी, लेकिन इसके पाठ का विस्तार हो जाएगा। कविता का पाठ कवि और कथ्य के परिचय से बढ़ जाता है जैसे। कई बार शीर्षक अपना ख़ुद का पाठ रचता है। अद्वितीय! यद्यपि अद्वितीय शब्द को हमने कुछ विशिष्ट कर दिया है। अद्वितीयता द्वितीयता का निषेध है, यद्यपि द्वितीयता कम प्रचलित शब्द है। मैंने यह पेंटिंग नहीं देखी थी। देखो, भाव में द्वितीयता स्वयं में कितना अद्वितीय है!

अंत में, क्या तुम कहोगे कि तुमने कला-संतोष-सा कुछ पाया?

नहीं, मैं दूसरे तरीक़े से दूसरी बात कहूँगा। कहूँगा अद्वितीयता कई दूसरी द्वितीयताओं की असेम्बलिंग की प्रक्रिया भी तो है।

सुनो, मैंने एक दिन एक हिंदी-स्त्री की कल्पना की जिसका नाम सुरंजिनी था। वह सुंदर भी थी—आवारा भी। उसने एक दिन अख़बार में विज्ञापन दिया कि वह युवा पेंटरों, फ़ोटोग्राफरों और युवा कवियों के लिए बतौर मॉडल-प्रेरणा उपलब्ध और उपस्थित है। उसने फिर उस पर ‘क्रिएटेड’ सब पेंटिंग्स, फ़ोटोग्राफ्स और कविताओं में से सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग, फ़ोटोग्राफ व कविता को चुना और उनमें अपनी सिगरेट से आग लगा दी।