कबीर अपनी उपमा आप हैं

कबीर की पिछली जयंती पर कबीरचौरा मठ ने हमेशा की तरह बनारस में एक धड़कता हुआ आयोजन किया था, जिसमें और चीज़ों के अलावा एक सत्र में कुछ अच्छी बातचीत भी हुई। यहाँ प्रस्तुत नोट्स उसी सत्र में लिए गए हैं। मैं उस सत्र का संयोजक था और ख़ाली समय में वक्ताओं के भाषणों में से कुछ न कुछ लिख ले रहा था। अब देखने पर लग रहा है कि इनमें पर्याप्त वैविध्य है और इसी शक्ल में इन्हें पाठकों के सम्मुख रखा जाए तो ज़्यादा हर्ज नहीं।

गुरु शरणानंद जी के भाषण के नोट्स

• हम लोग मोरमुकुट के भक्त हैं—चाहे गोकुल का हो, या लहरतारा का।

• भगवान क्या बराबरी करेंगे कबीर की। वह कबीर के पीछे चलते हैं।

कबिरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पीछे-पीछे हरि फिरैं कहत कबीर-कबीर

• भागवत में कृष्ण कहते भी हैं : संतों के चलने से उड़ने वाली धूल माथे पर लगाता हूँ।

• कबीर अपनी उपमा आप हैं।

• हम लोग कबीर बानी का यथोचित सम्मान नहीं कर पाए।

• कबीर के पास कुछ नहीं हैं—वह शाहों के शाह हैं। उन्हें न कोई चाह है, न कोई चिंता।

• जहाँ आसक्ति नहीं, वहाँ संपत्ति ही संपत्ति है। कबीर इसीलिए इतने अमीर हैं।

• कबीर की कविता ज्ञान की बजाय अनुभूति का विषय है।

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मोहम्मद आरिफ़ साहब के भाषण के नोट्स

• अगर कबीर आज होते और पाकिस्तान में होते तो ईश निंदा के आरोप में फाँसी चढ़ा दिए गए होते; और भारत में होते तो मॉब लिंचिंग में मारे जाते।

• कबीर महसूस करने का, दिल में उतार लेने का नाम हैं।

• कबीर श्रम की गरिमा और प्यार की संस्कृति के वकील हैं।

• कबीर के पहले का भारत और बाद का भारत अलग है। कबीर को जानकर भारत बदल गया और कट्टरता की पद्धति कमज़ोर पड़ गई।

• तारीख़-ए-सिकंदरी में दर्ज है कि एक बार सिकंदर लोदी ने कबीर साहब पर निगाह टेढ़ी की थी, लेकिन उसे चले जाना पड़ा।

• फ़ारसी की दुनिया और अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ जैसे मुग़ल शासक कबीर के मूल्यों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपने आपको कबीर साहब की रौशनी में बदला है।

• 1873 तक जहाँगीर के मक़बरे में कबीर साहब का चित्र लगा हुआ था।

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प्रोफ़ेसर दीपक मलिक के भाषण के नोट्स

• कबीर देशज आधुनिकता और अध्यात्म के बीच ऐसी कड़ी हैं, जो भारतीय इतिहास में दुर्लभ है।

• 1934 में महात्मा गांधी कबीर मठ आए। चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और रवींद्रनाथ भी कबीर मठ आए; क्योंकि आज़ादी और आधुनिकता की चेतना का नाभिक हैं—कबीर के मूल्य।

• महात्मा गांधी बनारस में किसी और आश्रम या मठ में नहीं गए। क्यों? बनारस में गांधी जी के आगमन पर कोई पूरा शोध नहीं हुआ अब तक।

• हमारी पूरी शताब्दी की चेतना उनमें निहित है।

• दरअस्ल, हम पूरे मनुष्य ही नहीं बचे। हम आधे, तिहाई या चौथाई इंसान बचे हैं; जबकि कबीर साहब हमारी अखंडित मानवीयता के असमाप्त वार्ताकार थे, हैं और रहेंगे।