बीथोवन के संगीत के लिए

दुनिया को हिटलर के ‘होलोकास्ट’ के लिए नहीं, बीथोवन की ‘सिम्फ़नी’ के लिए याद रखा जाना चाहिए।

हिटलर की नफ़रत से और उसके द्वारा की गईं यहूदियों और उनके बच्चों की हत्याओं के बाद भी यह दुनिया ख़त्म नहीं हुई और न ही स्थगित हुई। सब कुछ के इस जारी रहने में लुडविग वान बीथोवन के संगीत से दुनिया और ज़्यादा रोमानी, और ज़्यादा ख़ूबसूरत हुई।

जर्मनी की सड़कों पर साठ लाख यहूदियों के निस्तेज और ठंडे शव, क़रीब पंद्रह लाख बच्चों की ख़ून से सनी बे-हरकत लाशें… यह गंध कई दशकों तक पसरी रहेगी।

नस्लवादी साम्राज्यों की स्थापना की ज़िद में हिटलर का यह ‘होलोकास्ट’ मानव-इति‍हास में अब तक के सबसे बड़े ‘नरसंहारों’ में दर्ज हो चुका है।

स्मृति‍ में ख़ौफ़नाक तरीक़े से दर्ज ये ख़ूनी दृश्य अक्सर वर्तमान की आँखों में उभर आते हैं। लेकिन सुख यह है कि इन दृश्यों की पृष्ठभूमि में मुझे हिटलर के ख़ूनी हाथ नहीं, बल्कि बीथोवन की ‘सिम्फ़नी’ सुनाई देती है।

इसलिए जर्मनी को हिटलर के लिए नहीं, बीथोवन के संगीत के लिए याद किया जाना चाहिए।

दुनिया को यहूदियों की लाशों की गंध के लिए नहीं, उन लाशों के आस-पास बजती बीथोवन की ‘सिम्फ़नी’ के लिए याद रखा जाना चाहिए—हमेशा, हमेशा के लिए…

यह वर्ष बीथोवन का 250वाँ वर्ष है। उनका जन्म दिसंबर 1770 में जर्मनी के बॉन शहर में हुआ था। अप्रैल 1800 में वियना की एक शाम जब बीथोवन अपनी पहली ‘सिम्फ़नी’ परफ़ॉर्म कर रहे थे, तब उनके सामने खड़ी दुनिया जैसे कोई अचंभा सुन रही थी। सामंती घरों की वे सारी लड़कियाँ मन ही मन पियानो को छूती बीथोवन की उँगलियों को चूम रही थीं। वे मन ही मन बीथोवन को अपनी बाँहों में भर रही थीं, क्योंकि ऐसा वे सरेआम कभी नहीं कर सकती थीं। बीथोवन वह आदमी था, जिसे सिर्फ़ स्वप्न में प्रेम किया जा सकता था… सामंती लड़कियों की अपनी मजबूरियाँ थीं।

ख़ैर, यह वही रोमांटि‍क ‘सिम्फ़नी’ थी जिसे बीथोवन ने 29 साल की उम्र में कम्पोज़ किया था।

बीथोवन को कई बार प्यार हुआ। लेकिन वह उस प्यार को कभी किसी क्षितिज के किनारे नहीं ले जा सके। किसी समंदर के किनारे उसका हाथ पकड़कर उसके साथ ‘लव वॉक’ नहीं कर सके। सबसे उच्चतम स्तर के प्रेम की कभी-कभी यही नियति होती है।

बीथोवन ने हर बार अपने प्यार को अपने संगीत में ही एक्सप्लोर किया। क्योंकि दुनिया के लिए वह सिर्फ़ एक साधारण आदमी था। शायद इसीलिए बीथोवन ने अपने भीतर एक दुनिया रच ली और सिर्फ़ अपने संगीत से ही उसने दुनिया से बात की। उसने सुनना भी बंद कर दिया और चुप्पी भी धारण कर ली।

वह सिर्फ़ अपने पियानो के की-बोर्ड पर ही ज़िंदा रहे। उन्होंने संगीत को अपनी आत्मा में रचा और प्रेम भी अपनी कल्पना या शायद अपने भ्रम में ही किया। हालाँकि कहा जाता है कि वह एंतोनी ब्रेंतानो नाम की एक शादीशुदा स्त्री से प्रेम करते थे, लेकिन यह प्यार साकार नहीं हुआ। यह प्यार संभवतः एकतरफ़ा था। बीथोवन का कोई अमूर्त जेस्चर। यह शायद है ही नहीं, था ही नहीं कहीं।

इसलिए बीथोवन के दिल में एक काल्पनिक ‘म्यूज’ भी थी, जिसे वह किसी जीती-जागती प्रेमि‍का की तरह प्रेम करते और दुलारते थे। जिसके लिए उन्होंने लिखा था, ‘‘ओह, माय लव! नींद की आख़िरी तह में सोए हुए मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा हूँ, यहाँ मैं ख़ुश हूँ, लेकिन दुख भी बहुत है। या तो मैं पूरी तरह से तुम्हारे साथ हो सकता हूँ या बि‍ल्कुल भी नहीं। इसलिए मैंने तय किया है कि मैं दुनिया में घूमता रहूँगा, जब तक कि उड़कर तुम्हारी बाँहों में न आ जाऊँ…’’

बीथोवन ने प्रेम के इन सारे अज्ञात ठि‍कानों पर जीते हुए रोमांटिसिज्म की कई धुनें बनाईं। उन्होंने क्लासिक भी रचा और रोमांस भी। यह कह सकते हैं कि ज़िंदगी की करवटों ने उन्हें क्लासिक और प्रेम ने उन्हें रोमांटि‍सिज्म की तरफ़ खींचा।

कुछ अग्ली, चिड़चिड़े, बेतरतीब रहने वाले और फक्कड़ बीथोवन की आत्मा को शायद पहले से पता था कि भविष्य की दुनिया अवसाद, निराशा और तमाम तरह के दुख-पीड़ाओं से भरी-घि‍री होगी; इसलिए वह ऐसा संगीत रच गए जो हमारी ज़िंदगी को क्लासिकल भी बनाता है और रोमांस का सुख भी देता है।

1827 में जब बीथोवन की मृत्यु हुई, तब वह अपने म्यूजिक-सेंस के सबसे एक्ट्रीम जेस्चर में थे। तब उनके भीतर प्रेम भी था और पीड़ा भी। तब वह अपनी दसवीं सिम्फ़नी की धुनों के बारे में सोच रहे थे। वह चाहते थे कि वह हवा को संगीत में तब्दील कर सकें या हवा से संगीत पैदा कर सकें। लेकिन दसवीं सिम्फ़नी को पूरा करने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

आज कहा जा रहा है कि बीथोवन की अधूरी धुनों को पूरा करने के लिए संगीतज्ञों की एक पूरी टीम काम कर रही है। इसके लिए एक ऐसा सॉफ़्टवेयर तैयार किया जा रहा है, जो बता सकेगा कि धुन बनाते वक़्त बीथोवन क्या सोच रहे थे? उनकी धड़कनें कैसे चल रही थीं? बीथोवन म्यूजिक के आर्काइव की प्रमुख क्रिस्टीन सीगर्ट ने भी इस बात की पुष्टि की है।

हालाँकि अपनी मौत से पहले बीथोवन दुनिया को 9 सिम्फ़नी, 7 कर्न्‍चेटोज पीस, 32 पियानो सोनाटा, 10 वायलिन सोनाटा और कुछ अन्य कम्पोजिशंस दे गए। उनका यह काम शायद हिटलर के होलोकास्ट को हमेशा नीचा दिखाता रहेगा।

ये धुनें याद दिलाती रहेंगी कि दर्दनाक से दर्दनाक त्रासदियों के बाद भी दुनिया जारी रहेगी। संगीत रचते हुए भले ही बीथोवन बहरे हो जाएँ, लेकिन दुनिया अपनी आत्मा से उनकी धुनें सुनती रहेगी। दुनिया की सबसे भयावह त्रासदी के बीच भी बीथोवन की सिम्फ़नी गूँजती रहेगी।