वह आवाज़ हर रात लौटती है

तवायफ़ मुश्तरीबाई के प्यार में पड़े असग़र हुसैन से उनके दो बेटियाँ हुई—अनवरी और अख़्तरी, जिन्हें प्यार से ज़ोहरा और बिब्बी कहकर बुलाया जाता। बेटियाँ होने के तुरंत बाद ही, असग़र हुसैन ने अपनी दूसरी बीवी, मुश्तरीबाई को छोड़ दिया। उस मुश्किल घड़ी में मुश्तरीबाई को अपनी दोनों बेटियों के साथ ख़ूब संघर्ष करना पड़ा। वे मासूम-जान, जब चार बरस की हुई तो कहीं से ज़हरीली मिठाई खा ली। उनकी तबीयत ख़राब होने लगी। दोनों को अस्पताल ले गए, जहाँ ज़ोहरा ने दम तोड़ दिया। लेकिन बिब्बी जैसे-तैसे बच गई।

‘रेशमा हमारी क़ौम को गाती हैं, किसी एक मुल्क को नहीं’

थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बीलाई ढंग से अपना सामान लादे आवाजाही करते और इस आवाजाही में साथ देता उनकी ज़मीन का गीत। उन्हीं परिवारों में से एक परिवार में जन्मी ख्यात कलाकार रेशमा।

‘कोरी चील म्हारी काया पर छाया करै’

जाने कितने बरस पहले का दिन रहा होगा, जब सत्यजित राय ने बीकानेर के जूनागढ़ क़िले के सामने सूरसागर तालाब किनारे पीपल पेड़ के नीचे तंदूरा लिए उसे सुना था, जिसे आगे चल उन्होंने सोनी देवी के रूप में जाना। उसकी आवाज़ में क्या था, यह तो सिर्फ़ सत्यजित रे ही जानते थे। एक मरुस्थली आवाज़, जिसमें विकल आह्वान का गान अलग ही रूप में लगता था।

‘तकलीफ़ में गाने से ही सिद्धि मिलती है’

उत्तर प्रदेश में एक जगह है बनारस, जिसके इंचार्ज हैं—भगवान शंकर। यहाँ बनारस में भूत भावन भगवान भोलेनाथ ने अपना एक एग्जीक्यूटिव या कहें एक एजेंट छोड़ रखा है, नाम है—पंडित छन्नूलाल मिश्र।

बीथोवन के संगीत के लिए

यह वर्ष बीथोवन का 250वाँ वर्ष है। उनका जन्म दिसंबर 1770 में जर्मनी के बॉन शहर में हुआ था। अप्रैल 1800 में वियना की एक शाम जब बीथोवन अपनी पहली ‘सिम्फ़नी’ परफ़ॉर्म कर रहे थे, तब उनके सामने खड़ी दुनिया जैसे कोई अचंभा सुन रही थी।

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