इक्कीसवीं सदी की स्त्री-कविता : 2

गत वर्ष यानी 2021 में हमने हिन्दवी पर नई सृष्टि नई स्त्री के अंतर्गत ऐसी 21 नई स्त्री-कवियों की कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिन्होंने अपनी काव्यात्मक आभा से इस सदी की हिंदी कविता सृष्टि को एक नई चमक दी। इस प्रसंग में ही अब प्रस्तुत है—नई सृष्टि नई स्त्री : 2022

नई सृष्टि नई स्त्री की इस दूसरी कड़ी में हम 21 ऐसी स्त्री-कवियों की 200 से अधिक कविताएँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्होंने इस यानी इक्कीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक में हिंदी कविता सृष्टि में प्रवेश किया। इनमें से 18 कवयित्रियों की कविताओं की कोई किताब अब तक प्रकाशित नहीं हुई है। इनमें से एक बड़ा प्रतिशत उन कवयित्रियों का है, जिन्होंने अपनी कविताओं के प्रकाशन के लिए प्रिंट प्रकाशन माध्यमों को नहीं चुना है। इनमें से भी एक बड़ा प्रतिशत उन कवयित्रियों का है, जिन्होंने अपनी कविताओं और अपने पाठक के बीच से संपादक नाम की सत्ता-संस्था-मध्यस्थता को बिल्कुल हटा दिया है और जिनसे परिचय हिंदी के केंद्रीय कविता संसार के लिए बिल्कुल नवीन है।

इन स्त्री-कवियों की कविता के केंद्रीय की-वर्ड स्त्री, देह, हिंसा, प्रेम, संबंध, वियोग, इच्छा, निंदा, दुख और लोक हैं। इन की-वर्ड्स में इन स्त्री-कवियों ने घर, गाँव, परिवार, शहर, महामारी, न्याय, उम्मीद, संघर्ष, जीवन, मृत्यु, चीज़ें, कविता, स्वप्न, सृजन, करुणा, ऊब, आज़ादी, स्मृति—सरीखे कई की-वर्ड जोड़े हैं।

नई सृष्टि नई स्त्री-2021 प्रस्तुत करते हुए हमने कहा था : ”हिंदी में उपस्थित स्त्री-कविता का यह स्वर्णकाल है। इस संभव-साक्ष्य को पाने के लिए हमारी भाषा बेहद संघर्ष करती रही है। स्त्री-कवियों की संख्या का विस्तार अब इस क़दर है कि उन्होंने पूरे काव्य-दृश्य को ही अपनी आभा से आच्छादित किया हुआ है।

वह दौर जब स्त्री-कवियों के नाम शुरू होते ही समाप्त हो जाते थे, अब विचार का अकादमिक विषय हो चुका है। अब हमारा सामना हिंदी कविता की एक बिल्कुल नई सृष्टि से है, जहाँ एक नई स्त्री है—अपनी बहुसंख्य अभिव्यक्तियों के साथ।

यहाँ नई सृष्टि से हमारा आशय इक्कीसवीं सदी की स्त्री-कविता से है। इस कविता में उस नए स्त्रीवादी सौंदर्यशास्त्र का दर्शन किया जा सकता है, जिसका निर्माण बीसवीं सदी के आख़िरी दशक में उभरी स्त्री-कवियों ने तब किया, जब इस बाबत सोचना भी कुफ़्र था। आधुनिक हिंदी कविता के सबसे ज़्यादा कामयाब—सातवें और आठवें—दशक में किसी प्रमुख स्त्री-हस्ताक्षर का न होना इस बात की तस्दीक़ है।

दरअस्ल, यह स्त्री-अनुभवों और आकांक्षाओं को एक पुरुष-भाषा में व्यक्त करने की पितृ-सत्तात्मक साज़िश का ही निष्कर्ष है।

नवें दशक में इस संरचना के विखंडित होते ही हिंदी कविता में स्त्री-हस्ताक्षरों के अभाव का द्वार टूटता है। वय-संचालित तथ्यों को परे कर दें और इस बहाव में वरिष्ठ स्त्री-कवि शुभा को भी शरीक करें जिनकी कविताएँ नवें दशक में ही सामने आईं, तब कह सकते हैं कि कम-से-कम दस प्रमुख स्त्री-हस्ताक्षर—शुभा, कात्यायनी, गगन गिल, अनीता वर्मा, अनामिका, नीलेश रघुवंशी, निर्मला गर्ग, तेजी ग्रोवर, अजंता देव, सविता सिंह—इस अर्थ में नवें दशक की हिंदी कविता को एक झटके में सातवें और आठवें दशक की कविता से ज़्यादा वैधता, विविधता और वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं।

इस प्रकार देखें तो इक्कीसवीं सदी की स्त्री-कविता को अपनी अभिव्यक्ति के लिए अपनी भाषा में ही एक सशक्त पृष्ठभूमि मिलती है। यहाँ ‘हिन्दवी’ इस अभिव्यक्ति से ही एक चयन लेकर हाज़िर है। यह चयन एक बानगी है कि किस तरह हिंदी की बिल्कुल नई स्त्री-कविता अब तक अव्यक्त रहे को, व्यक्त कर रही है।’’

‘हिन्दवी’ सतत इस तरफ़ एकाग्र है कि हिंदी की नई कविता पर नई बहसें संभव हों। हम दो वर्षों से ‘इसक’ जैसा आयोजन कर रहे हैं, जिसमें इक्कीसवीं सदी में सामने आए 21 हिंदी कवियों के दो चयन लेकर हम प्रस्तुत हो चुके हैं। इस सिलसिले में ही ‘नई सृष्टि नई स्त्री’ शीर्षक आयोजन की यह दूसरी कड़ी भी है। इस मार्च के आगामी 21 दिनों तक हम इन 21 स्त्री-कवियों की रचनाशीलता से आपको परिचित कराते रहेंगे :

अंकिता रासुरी
अदिति शर्मा
अनुराधा अनन्या
अर्चना लार्क
अर्पिता राठौर
आरती अबोध
ऐश्वर्य राज
कायनात
ज्योति पांडेय
पायल भारद्वाज
पावर्ती तिर्की
प्रकृति करगेती
प्रियंका दुबे
प्रेमा झा
रूपम मिश्र
श्रुति गौतम
सुजाता गुप्त
सुदीप्ति
सुलोचना
स्मृति प्रशा
स्वाति मेलकानी

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‘नई सृष्टि नई स्त्री’ समग्र के लिए यहाँ देखें : नई सृष्टि नई स्त्री : 2022