जनवरी एक धुँध भरा सपना है

मुझे अक्सर सुबह-सुबह एक सपना आता है। साल का आख़िरी दिन है। मेरे एक हाथ में छोटा-सा बैग है और दूसरे हाथ से मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ रखा है। हम भाग रहे हैं। सब स्लो मोशन है। मैं भागते हुए तुम्हारी तरफ़ देख रहा हूँ। तुम ज़ोरों से हँसती दिख रही हो। तुम्हारे बाल उड़ कर चेहरे पर फैल रहे हैं।

मुझे जो मुस्कुराहटों की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं, वो तुम्हारी हैं; मेरी हैं। मैं वो आवाज़ें ध्यान से सुन रहा हूँ। सामने धुँध है, रास्ता है या बादल कुछ समझ नहीं आ रहा है। हम गहरे धुएँ से घिरे एक-दूसरे का हाथ थामे बस भागते जा रहे हैं।

नींद से जागता हूँ और देर तक बिस्तर पर लेटा यूँ ही किसी जनवरी की शुरुआत के बारे में सोचता हूँ। लगता है, वह साल का पहला दिन नहीं; बल्कि वह किसी नए नाटक की रिहर्सल का पहला दिन है। खिड़की से भीतर आती हल्की ठंड में दो कप चाय बनाता हूँ। एक कप हाथ में लेता हूँ और दूसरा सामने ख़ाली पड़ी टेबल पर रखकर बैठ जाता हूँ। साल शुरू हो जाता है।

मुझे अक्सर सुबह-सुबह यह सपना आता है कि हम भाग रहे हैं। मैं भागते हुए बार-बार तुम्हारे चेहरे की तरफ़ देखता हूँ और सपना अचानक यहीं-कहीं तुम्हारी आँखों के पास आकर टूट जाता है। मैं आँखें खोल लेता हूँ। मेरे कानों में फिर भी हम दोनों की मुस्कुराहटों की आवाज़ें गूँजती हैं। मैं बिस्तर पर लेटा हुआ, वे आवाज़ें ध्यान से सुनता रहता हूँ।

तुम कहती हो—मेरा तो अब नए साल में एक ही सपना है कि तुमको लेकर भाग जाऊँ… दूर, सबसे बहुत दूर। फिर दुनिया के सारे पहाड़, नदी, यूरोप, प्राग और समंदर… हर जगह बस कसकर तुम्हारा हाथ थामूँ और कह सकूँ—‘मुझे प्रेम है तुमसे!’

मैं कहता हूँ—जनवरी एक धुँध भरा सपना है। जो खेलता हुआ आता है और दिसंबर की आँखें अपनी ठंडी हथेलियों से बंद कर देता है। दिसंबर एक अंदाज़ा लगाकर कहता है कि ‘मैं जानता हूँ, यह तुम हो।’ और दोनों ज़ोर से हँस देते हैं।

मैंने कई बार इन सपनों से आती हँसी और मुस्कुराहट की आवाजों को ध्यान से सुना है। छिपकर उनका पीछा करने की कोशिश की है। उनके पीछे-पीछे कई बार नींद तक भी गया और कई बार गहरे सपनों तक भी। पर उस छोर तक कभी नहीं पहुँच पाया, जहाँ से वे आवाज़ें आती हैं।

एक बात बताओगी…? क्या तुम्हें सुनाई पड़ती हैं, कभी वे आवाज़ें? अच्छा ये बताओ, क्या तुमने देखा है कभी ऐसा कोई सपना? अच्छा तुम्हें क्या लगता है, क्या हम कभी वक़्त के उस छोर तक पहुँच सकते हैं; जहाँ से हमें प्रेम में डूबी और आपस में जुगलबंदी करती अपनी ही मुस्कुराहटों की आवाज़ें आती हैं? फिर ये सपने क्यूँ आते हैं प्यार?

मेरा एक विश्वास है कि प्रेम में डूबे हम बार-बार आपस में अपने सपने भी बदलते हैं। मैंने भी शायद यही किया है। यह भागने वाला सपना तुम्हारा रह गया है।

जानती हो, मैंने भागते हुए तुम्हारी आँखों में मेरा एक सपना देखा था। अब सामने रास्ता है या बादल कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं धुँध में बस भागते जा रहा हूँ।

~•~

सौरभ अनंत की कविताएँ यहाँ पढ़िए : सौरभ अनंत का रचना-संसार