सत्य की व्याख्या साहित्य की निष्ठा है
मेरे हृदय और मस्तिष्क में भावों और विचारों की जो आधी शताब्दी की अर्जित प्रज्ञा-पूँजी थी, उस सबको मैंने ‘वयं रक्षामः’ में झोंक दिया है। अब मेरे पास कुछ नहीं है। लुटा-पिटा-सा, ठगा-सा श्रांत-क्लांत बैठा हूँ। चाहता हूँ—अब विश्राम मिले। चिर न सही, अचिर ही। परंतु यह हवा में उड़ने का युग है।
By हिन्दवी
अगस्त 26, 2021