नई कविता नई पीढ़ी ही नहीं बनाती
किसी भी समय की कविता हो, उस कविता में आने वाले परिवर्तन या उस नई कविता का चेहरा केवल उस समय आई नई पीढ़ी के कवि ही नहीं बनाते हैं। उससे पहले के जो कवि हैं, जो लिख रहे होते हैं, वह भी कहीं न कहीं उसको बनाते हैं। यह नहीं है कि जो सत्तर के दशक से या उससे भी पहले से जो रचनाकार लिखते हुए आ रहे थे, उनका इस नई सदी की कविता का चेहरा-मोहरा बनाने में कोई योगदान नहीं है।