जहाँ लड़की होना ही काफ़ी है
मुझे बचपन से ही करौली की धर्मशालाओं और अपने शहर की महिला कॉलेजों में कोई ज़्यादा फ़र्क़ समझ में नहीं आया। मुझे लगता रहा कि धर्मशालाओं की तरह ये कॉलेज भी धर्मार्थ ही खुलवा दिए गए थे, जिनसे कोई भी उम्मीद रखना गुनाह-ए-अज़ीम-सा था
By अपूर्वा सिंह
मई 6, 2021