कल कुछ कल से अलग होगा

आलोकधन्वा के कविता-संसार की कल्पना स्त्रियों के बग़ैर नहीं की जा सकती। वह हिंदी में स्त्री-विमर्श के एक प्रतिनिधि और सशक्त कवि हैं। माँ पर कविता लिखते हुए आलोकधन्वा को एक पूरा ज़माना याद आता है।